Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 339
________________ ३३४ ] [ कर्म सिद्धान्त स्वतंत्र प्राकृत कथा-ग्रंथों में कर्मवाद की अनेक कथाएँ हैं। 'तरंगवती' में पूर्वजन्मों की कथाएँ हैं। तरंगवती को कर्मों के कारण पति-वियोग सहना पड़ता है । 'वसुदेवहिंडी' में तो कर्मफल के अनेक प्रसंग हैं । चारुदत्त की दरिद्रता उसके पूर्वकृत कर्मों का फल मानी जाती है। इस ग्रंथ में वसुभति दरिद्र ब्राह्मण की कथा होनहार का उपयुक्त उदाहरण है। वसुभूति के यज्ञदत्ता नाम की पत्नी थी। पुत्र का नाम सोमशर्म तथा पुत्री का सोमशर्मा था। उनके रोहिणी नाम की एक गाय थी। दान में मिली हुई खेती करने के लिए थोड़ी सी जमीन थी। एक बार अपनी दरिद्रता को दूर करने के लिए वसुभूति शहर जा रहा था । तो उसने अपने पुत्र से कहा कि मैं साहूकारों से कुछ दान-दक्षिणा मांगकर शहर से लौट्रगा। तब तक तुम खेती की रक्षा करना। उसकी उपज और दान में मिले धन से मैं तेरी और तेरी बहिन की शादी कर दूंगा। तब तक अपनी गाय भी बछड़ा दे देगी। इस तरह हमारे संकट के दिन दूर हो जायेंगे । __ब्राह्मण वसुभति के शहर चले जाने पर उसका पुत्र सोमशर्म तो किसी नटी के संसर्ग में नट बन गया। आरक्षित खेती सूख गयी। सोमशर्मा पुत्री के किसी धूर्त से गर्भ रह गया और गाय का गर्भ किसी कारण से गिर गया। संयोग से ब्राह्मण को भी दक्षिणा नहीं मिली। लौटने पर जब उसने घर के समाचार जाने तो कह उठा कि हमारा भाग्य ही ऐसा है। इस ग्रंथ में इस तरह के अन्य कथानक भी हैं। . आचार्य हरिभद्र ने प्राकृत की अनेक कथाएँ लिखी हैं। 'समराइच्चकहा' और 'धूर्ताख्यान' के अतिरिक्त उपदेशपद और दशवकालिक रिण में भी उनकी कई कथाएँ कर्मवाद का प्रतिपादन करती हैं। उनमें कर्म-विपाक अथवा दैवयोग से घटित होने वाले कई कथानक हैं, जिनके आगे मनुष्य की बुद्धि और शक्ति निरर्थक जान पड़ती है । 'समराइच्चकहा' के दूसरे भव में सिंहकुमार की हत्या जब उसका पुत्र आनंद राजपद पाने के लिए करने लगता है तो सिंहकुमार सोचता है कि जैसे अनाज पक जाने पर किसान अपनी खेती काटता है वैसे ही जीव अपने किए हुए कर्मों का फल भोगता है। उपदेशपद में 'पुरुषार्थ' या 'देव' नाम की एक कथा भी हरिभद्र ने प्रस्तुत की है। इसमें कर्मफल की प्रधानता है। _ 'कुवलयमाला कहा' में उद्योतनसूरि ने कई प्रसंगों में कर्मों के फल भोगने की बात कही है। कषायों के वशीभूत होकर जीने वाले व्यक्तियों को क्या-क्या भोगना पड़ता है इसका विस्तृत विवेचन लोभदेव आदि की कथाओं में इस ग्रंथ में किया गया है। राजा रत्नमुकुट की कथा में दीपशिखा और पतंगे का दृष्टांत दिया गया है। राजा ने पतंगे को मृत्यु से बचाने के लिए बहुत प्रयत्न किए। अंत में उसे एक संदूकची में बंद भी कर दिया किन्तु प्रातःकाल तक उसे एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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