Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 348
________________ कर्म और पुरुषार्थ की जैन कथाएँ ] [ ३४३ साथ रहेगा। इसके अलावा भी तुम्हें कभी कोई संकट हो तो मुझे याद करना । मैं तुम्हारी मदद करूंगा' ऐसा कहकर वह नागकुमार चला गया। - एक दिन जब विद्युत्प्रभा जंगल में अपने बगीचे के नीचे सो रही थी। तब वहाँ पाटलिपुत्र का राजा जितशत्रु अपनी सेना के साथ आया। उसने इस जादुई बगीचे के साथ सुन्दर विद्युत्प्रभा को देखकर उससे विवाह कर लिया। राजा ने विद्युत्प्रभा का नाम बदलकर 'आराम शोभा' रख दिया और उसे अपनी पटरानी बना दिया। इस प्रकार आराम शोभा के दिन सुख से बीतने लगे। इधर आरामशोभा की सौतेली माता के एक पुत्री उत्पन्न हुई और वह क्रमशः युवा अवस्था को प्राप्त हुई । तब उसकी माता ने विचार किया कि राजा मेरी पुत्री को भी रानी बना ले ऐसा कोई उपाय करना चाहिए। उसकी सौतेली मां ने कपटपूर्ण अपनत्व दिखाकर आरामशोभा को मारने के लिए अपने पति अग्निशर्मा के साथ तीन बार विषयुक्त लड्डू बनाकर भेजे । किन्तु उस नागकुमार की सहायता से वे लड्डू विषरहित हो गये। तब उस सौतेली मां ने प्रथम प्रसव कराने के लिए आरामशोभा को अपने घर बुलवाया। वहाँ आरामशोभा ने एक पुत्र को जन्म दिया। तभी उस सौतेली मां ने आरामशोभा को धोखे से घर के पिछवाड़े के कुए में डाल दिया और समझ लिया कि आरामशोभा मर गयी है। किन्तु वहाँ उस नागकुमार ने पारामशोभा के लिए कुए के भीतर ही एक महल बना दिया। ____ इधर उस सौतेली मां ने अपनी पुत्री को पारामशोभा के स्थान पर राजा की रानी बनाकर उसके पुत्र के साथ पाटलिपुत्र भेज दिया। किन्तु इस नकली पारामशोभा के साथ उस जादुई बगीची के न होने से राजा को शंका हो गयी। वह चुपचाप असली बात की खोज में रहने लगा। उधर पुत्र और पति के शोक से दुःखी आरामशोभा नागकुमार की सहायता से रात्रि में अपने पुत्र को देखने चुपके-से राजमहल में जाने लगी। किन्तु उसे सुबह होने के पहले ही लौटना पड़ता था। अन्यथा उसका जादुई बगीचा हमेशा के लिए नष्ट हो जायेगा। किन्तु एक दिन राजा ने असली आरामशोभा को पकड़ लिया और सारी बातें जान लीं। तभी वह जादुई बगीचा नष्ट हो गया। किन्तु आरामशोभा अपने पुत्र और पति से मिलकर संतुष्ट हो गयी। राजा ने आरामशोभा की सौतेली मां और पुत्री को सजा देनी चाही तो आरामशोभा ने उन्हें माफ करा दिया। एक दिन राजा के साथ वार्तालाप करते हुए आरामशोभा ने प्रश्न किया कि मुझे बचपन में इतने दुःख क्यों मिले और बाद में राजमहल के सुख मिलने का क्या कारण है ? जादुई बगीचे ने मेरी सहायता क्यों की ? तब राजा आरामशोभा को एक सन्त के पास ले गया। उससे उन्होंने अपनी जिज्ञासा का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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