Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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कर्म और कार्य-मर्यादा ]
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ऊपर 'मोक्ष मार्ग प्रकाशक' के जिस मत की चर्चा की इसके सिवा दो मत और मिलते हैं जिनमें बाह्य सामग्री की प्राप्ति के कारणों का निर्देश किया गया है । इनमें से पहला मत तो पूर्वोक्त मत से ही मिलता जुलता है। दूसरा मत कुछ भिन्न है । आगे इन दोनों के आधार से चर्चा कर लेना इष्ट है:
(१) षट्खण्डागम चूलिका अनुयोग द्वार में प्रकृतियों का नाम निर्देश करते हुए सूत्र १८ की टीका में वीरसेन स्वामी ने इन कर्मों की विस्तृत चर्चा की है । यहाँ सर्वप्रथम उन्होंने साता और असाता वेदनीय का वही स्वरूप दिया है जो 'सर्वार्थ सिद्धि' आदि में बतलाया गया है। किन्तु शंका-समाधान के प्रसंग से उन्होंने साता वेदनीय को जीव विपाकी और पुद्गल विपाकी उभय रूप सिद्ध करने का प्रयत्न किया है ।
इस प्रकरण के वांचने से ज्ञात होता है कि वीरसेन स्वामी का यह मत था कि साता वेदनीय और असाता वेदनीय का काम सुख-दुःख को उत्पन्न करना तथा इनकी सामग्री को जुटाना दोनों है ।
(२) तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ सूत्र ४ की 'सर्वार्थ सिद्धि' टीका में बाह्य सामग्री की प्राप्ति के कारणों का निर्देश करते हुए लाभादि को उसका कारण बतलाया है। किन्तु सिद्धों में अति प्रसंग देने पर लाभादि के साथ शरीर नाम कर्म आदि की अपेक्षा और लगा दी है।
- ये दो ऐसे मत हैं जिनमें बाह्य सामग्री की प्राप्ति का क्या कारण है, इसका स्पष्ट निर्देश किया है । आधुनिक विद्वान् भी इनके आधार से दोनों प्रकार के उत्तर देते हुए पाये जाते हैं । कोई तो वेदनीय को बाह्य सामग्री की प्राप्ति का निमित्त बतलाते हैं और कोई लाभान्तराय आदि के क्षय व क्षयोपशम को। इन विद्वानों के ये मत उक्त प्रमाणों के बल से भले ही बने हों किन्तु इतने मात्र से इनकी पुष्टि नहीं की जा सकती क्योंकि उक्त कथन मूल कर्म व्यवस्था के प्रतिकूल पड़ता है।
यदि थोड़ा बहुत इन बातों को प्रश्रय दिया जा सकता है तो उपचार से ही दिया जा सकता है। वीरसेन स्वामी ने तो स्वर्ग, भोगभूमि और नरक में सुख-दुःख की निमित्तभूत सामग्री के साथ वहाँ उत्पन्न होने वाले जीवों के साता और असाता के उदय का सम्बन्ध देखकर उपचार से इस नियम का निर्देश किया है कि बाह्य सामग्री साता और असाता का फल है । तथा पूज्यपाद स्वामी ने संसारी जीव में बाह्य सामग्री में लाभादि रूप परिणाम लाभान्तराय आदि के क्षयोपशम का फल जानकर उपचार से इस नियम का निर्देश किया है कि लाभान्त राय आदि के क्षय व क्षयोपशम से बाह्य सामग्री की प्राप्ति होती है। तत्त्वतः बाह्य सामग्री की प्राप्ति न तो साता-असाता का ही फल है और न
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