Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 302
________________ कर्म सिद्धान्त और समाज-संरचना ] [ २९७ है परन्तु कहीं विद्रोह का काम नहीं। गरीबों को धार्मिकों ने काफी गहरी नींद सुला दिया है। यदि सिर कभी उठाया भी तो राजदण्ड और उच्च वर्ग के अत्याचारों ने दृढ़तापूर्वक दबा दिया है । सदियों के अत्याचार से वे मूक बन गये हैं । चुपचाप सहना सीख गये हैं । कर्मों के सुफल का इन्तजार है, इस जीवन में नहीं तो अगले जीवन में सही। कर्म सिद्धांत मानव को सबल बनाने, अपने प्रति जागरूक और सक्रिय बनाने के लिये था। कर्म का फल उसे ही मिलेगा जिसने कर्म किया है, परन्तु व्यवस्था ऐसी बना दी कि कर्म का फल बिचौलिये-श्रेष्ठ वर्ग-छीन ले गये । हल चलाया किसान ने और फल खाया जमींदार ने। यदि किसान ने आवाज उठाई तो पिटाई हो गई। तब कोई धार्मिक नहीं बोला। धार्मिकों का लालनपालन तो राजा ही करते थे। उनको भिक्षा तो श्रेष्ठ घरों से ही मिलती थी। उन्होंने उस पिटे किसान को पुचकारा और मरहम पट्टी की और सलाह दी "अगले जीवन को सुधार"। कर्म सिद्धांत का संबंध व्यक्तिगत जीवन से है समाज की संरचना से इसका सीधा संबंध नहीं है। समाज में भाईचारे, सहानुभूति और सहृदयता के नये संस्कार डालने होंगे। आज समाज में हृदयहीनता जगह-जगह देखी जाती है । यह सब मानव मूल्यों के खिलाफ है । लेकिन धन के नशे में चूर और उनको यह गर्व कि यह धन उनके कर्मों का फल है और जो गरीब हैं वे गरीबी भोगने के लिये हैं, ये संस्कार हृदयहीनता के कारण हैं। कर्म-सिद्धांत की आड़ लेकर धनी वर्ग बहुत दिन सुखी नहीं रह सकता । समाज-संरचना की वजह से धन का योग है; यदि उन्होंने सहृदयता और सहानुभूति नहीं दर्शाई और गरीबीअमीरी में काफी अन्तर रहा तो वह दिन दूर नहीं जब विद्रोह की आग भड़केगी। विद्रोह का आधार हिंसा है। अतः उसका सुफल हो मिले, आवश्यक नहीं । परिवर्तन में अहिंसा का आधार हो तो समाज में सरसता व सहृदयता बनी रह सकती है। विद्रोह के अनन्तर एक सबल वर्ग दूसरे वर्ग पर सत्तारूढ़ हो सकता है; परन्तु अहिंसात्मक परिवर्तन निर्देशित ढंग से हो सकता है और उसमें शोषक और शोषित दोनों मुक्त होते हैं। अतः समय रहते समाज की व्यवस्था में निर्देशित परिवर्तन, शिक्षा और संस्कृति के माध्यम से हो तो न्यायवादी और समतावादी समाज का आधार बनाया जा सकता है । गुमराह कर विषमताओं का पोषण अन्ततोगत्वा खतरनाक साबित हो सकता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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