Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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कर्म सिद्धान्त और समाज-संरचना ]
[ २६५ का पोषण करेंगे। वे ऐसी व्यवस्था करेंगे कि उनका धन-साधन सुरक्षित रहे और जो उनकी सत्ता को उखाड़ने की कोशिश करें, वे दण्ड के भागी बनें। न केवल राजदण्ड बल्कि धार्मिक व्यवस्था भी ऐसी करावेंगे कि उनको कोई छेड़े नहीं। ऐसे नियम व उपदेश का प्रचार होगा कि पराया धन नरक में ले जाने वाला है, अतः उस ओर नजर भी न डालें। इससे सुन्दर व्यवस्था बनी रहे और जो जैसा जीवन जी रहे हैं, उसी में सुख महसूस करें। जो वर्तमान स्थिति है उसे पूर्व कर्मों का फल मानकर इस जीवन में पश्चात्ताप करें और आगे का जीवन सुधारने का प्रयत्न करें। इसीलिये मार्क्स ने धर्म को जनता के लिये अफीम की संज्ञा दी है।
व्यक्ति को फल अपने कर्म के अनुसार मिलता है। इस वैज्ञानिक सिद्धांत को कौन नकार सकता है ? जैसा बीज वैसा फल । जैसा कर्म वैसा जीवन ।
परन्तु व्यक्ति पर लागू होने वाले सिद्धांत को बिना अपवाद के पूरे समाज पर लागू करके समाज की व्यवस्था बनाना और उसकी अच्छाइयों या बुराइयों को तर्कसंगत बनाना उतना वैज्ञानिक नहीं है। बल्कि यह सिद्ध किया जा सकता है कि इस कर्म सिद्धांत को समाज-व्यवस्था का आधार बनाने में निहित स्वार्थों ने कार्य किया है और धर्म व कर्म के वैज्ञानिक और शुद्ध स्वरूप को विकृत कर व्यवस्था को स्थायी बनाये रखने का प्रयास किया है ।
यदि धार्मिक और दार्शनिक बार-बार यह कहें कि जो कुछ तुम्हें मिला या मिलेगा वह कर्म आधारित है और पूर्व जन्म के कर्मों का फल है तो अपनी वर्तमान स्थिति के बारे में यही समझ कर संतोष करेगा कि उसके पूर्व जन्म के कर्म खराब हैं अतः उसे ऐसा दुःखी जीवन मिला है और वर्तमान को किसी तरह भोगते हुए अगले जीवन को सुधारने का प्रयत्न करना है। वर्तमान को कैसे सुधारें, यह कौन बताये ? जब अमीर आदमी के पास धन-दौलत है तो वह उसको अपने पूर्व जन्म के कर्म का फल मानकर गर्व करता है कि यह उसका पुराना गौरव है और उसको भोगना उसका हक है । यदि कोई उसे छीनने का • प्रयत्न करे तो धार्मिक कहते हैं यह पाप है क्योंकि सम्पत्ति पर उसका हक पूर्व जन्म के कर्मों के फल से है।
व्यक्ति का वर्तमान के कर्मों के फल प्राप्त कर उसका भोग करना एक बात है और भूत के कर्मों के फल पर बिना प्रयत्न के भी वर्तमान अमीरी में रहना दूसरी बात है । यह अमीरी और गरीबी कर्म आधारित नहीं वरन् समाज व्यवस्था पर आधारित है। जैसी व्यवस्था होगी उसी आधार पर गरीबी या अमीरी होगी।
___ व्यक्ति धन कमाकर रोटी खावे यह वर्तमान कर्म का फल है; परन्तु पिता कमाकर पुत्र के लिये छोड़ जावे और पुत्र उसका भोग करे, यह पूर्व जन्म
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