Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 284
________________ ध्यान और कर्मयोग 0 श्री जी० एस० नरवानी एक महात्मा से किसी ने पूछा कि भगवन् ! मनुष्य के लिए भजन मुख्य है अथवा कर्त्तव्य पालन मुख्य है ? सभी धर्म बतलाते हैं कि ईश्वर का भजन जीवन के लिए अति आवश्यक है पर विद्वान् , ज्ञानी और कर्मशील व्यक्ति यही बताते हैं कि कर्म ही पूजा है । वास्तविकता क्या है ? ___ महात्मा ने बताया कि मनुष्य का मुख्य धर्म अपना कर्त्तव्य करना ही है । जिन्होंने 'गीता' का कुछ अध्ययन किया है, वे यही जानते हैं कि बिना फल की इच्छा रखते हुए, बिना प्रासक्ति या मोह के कर्म करना ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म है । संसार में हर बुद्धिमान प्राणी अच्छे कर्म करना चाहता है, सत्य बोलना चाहता है, किसी को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहता, चोरी नहीं करना चाहता, पवित्र रहना चाहता है, सुखी व शांत रहना चाहता है, किसी से ईर्ष्या या द्वष नहीं रखना चाहता, क्रोध से दूर रहना पसंद करता है, काम को बुरा मानता है, लोभी व लालची मनुष्य को बुरा समझता है, संसार में मोह रखना व्यर्थ मानता है । पर यह सब चाहते हुए भी व जीवन में इन गुणों की उपयोगिता समझते हुए भी, क्या उसका आचरण उसके चाहे अनुकूल हो पाता है ? मनुष्य अनजाने में, अनचाहे, परिस्थिति वश, किसी कारण वश कैसे-कैसे कुकृत्य कर बैठता है जिन्हें वह स्वप्न में भी करने से झिझकता है । आखिर क्यों ? इसका कारण यही है कि हमने ईश्वर का ध्यान नहीं किया। इन चीजों को हमने ऊपरी मन से, बाहरी मन से तो करना चाहा पर मन में शक्ति थी नहीं, इसलिए हम इन्हें पूरा नहीं कर पाए । महात्मा गाँधी का उदाहरण हमारे सामने है । एक दुबला-पतला आदमी बिना हथियार विदेशी सरकार के कानून तोड़ता रहा क्योंकि उसके मन में ईश्वर की शक्ति थी। उन्होंने लिखा है कि"मैं अपने हर दिन का कार्य ईश्वर भजन से प्रारम्भ करता हूँ, पूरे दिन का भावी कार्यक्रम भी उसी ईश्वर की प्रेरणा से निश्चित करता हूँ, उसी राम के प्रकाश में मुझे यह भी दीख जाता है कि इस कार्य को पूरा करने का, असली जामा पहिनाने का रास्ता क्या है ? और फिर इस प्रकार सुनिश्चित कर्त्तव्य को पालन करने की शक्ति भी मुझे मेरे राम से मिलती है, मेरा राम नाम सब बीमारियों की अचूक औषधि है।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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