Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जैन कर्म साहित्य का संक्षिप्त विवरण
0 श्री अगरचन्द नाहटा विश्व में प्राणीमात्र में जो अनेक विविधताएँ दिखाई देती हैं, जैन धर्म के अनुसार उसका कारण स्वकृत कर्म हैं । जीवों के परिणाम व प्रवृत्तियों में जो बहुत अन्तर होता है, उसी के अनुसार कर्मबन्ध भी अनेक प्रकार का होता रहता है। उसी के परिणामस्वरूप सब जीवों व भावों आदि की विविधता है। जैन धर्म का कर्म-साहित्य बहुत विशाल है । विश्व भर में अन्य किसी धर्म या दर्शन का कर्म-साहित्य इतना विशाल व मौलिकतापूर्ण नहीं मिलता । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय में कर्म-साहित्य समान रूप से प्राप्त है। क्योंकि मूलतः १४ पूर्वो में जो आठवां कर्म प्रवाद पूर्व था, उसी के आधार से दोनों का कर्म साहित्य रचा गया है । यद्यपि श्वेताम्बर प्रागमों में यह फुटकर रूप से व संक्षिप्त विवरण रूप से मिलता है । पर कर्म प्रवाद पूर्व आदि जिन पूर्वो के आधार से मुख्य रूप से श्वेताम्बर एवं दिगम्बर साहित्य रचा गया है वे पूर्व ग्रन्थ लम्बे समय से प्राप्त नहीं हैं। दिगम्बरों में षट् खण्डागम, कषाय प्राभत, महाबंध आदि प्राचीनतम कर्म-साहित्य के ग्रन्थ हैं तो श्वेताम्बरों में बंध शतक, कर्म प्रकृति, पंच संग्रह आदि प्राचीन ग्रन्थ हैं। इन सबके आधार से पीछे के अनेक प्राचार्यों एवं मुनियों ने समय-समय पर नये-नये ग्रन्थ बनाये और प्राचीन ग्रन्थों पर चूर्णी, टीका आदि विवेचन लिखा । आज भी यह क्रम जारी है । हिन्दी और गुजराती में अनेक प्राचीन कर्म-शास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थों का अनुवाद एवं विवेचन छपता रहा है । और नये कर्म-साहित्य का निर्माण भी प्राकृत एवं संस्कृत में लाखों श्लोक परिमित हो रहा है । यद्यपि इस सम्बन्ध में गम्भीरतापूर्वक मनन और अनुभवपूर्ण अभिव्यक्ति की बहुत बड़ी आवश्यकता है।
श्वेताम्बर और दिगम्बर कर्म विषयक ग्रन्थों की एक सूची सन् १९१६ के जुलाई-अगस्त के 'जैन हितैषी' के अंक में प्रकाशित हुयी थी। श्री कान्ति विजयजी के शिष्य श्री चतुर विजयजी और उनके शिष्य श्री पुण्य विजयजी ने ऐसी सूची तैयार करने में काफी श्रम किया था। उस सूची को पंडित सुखलालजी ने कर्म विपाक प्रथम कर्म ग्रन्थ सानुवाद के परिशिष्ट में प्रकाशित की थी। इसके बाद कर्म-साहित्य सम्बन्धी एक बहुत ही उल्लेखनीय बड़ा ग्रन्थ प्रो० हीरालाल कापड़िया ने पन्यास निपुण मुनिजी और श्री भक्ति मुनिजी की प्रेरणा से लिखना प्रारम्भ किया था, पर वह कर्म मीमांसा नामक ग्रन्थ शायद पूरा नहीं लिखा गया।
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