Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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पाश्चात्य दर्शन में क्रिया-सिद्धान्त ]
[ २१६ आन्तरिक होता है लेकिन हम यह नहीं कह सकते हैं कि वे ऐच्छिक एवं अभिप्रायात्मक क्रियाएँ हैं तथा वे कर्ता के नियंत्रण में हैं। उदाहरण के लिए हाथ का काँपना, मिर्गी पाना आदि सहज क्रियाओं का कारण आन्तरिक (नाड़ीतंत्र से सम्बन्धित) है लेकिन उनको नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
यह बात सही है कि उस चीज को जो अभिप्रायात्मक क्रियाओं को अन्य क्रियाओं से विभेदित करती है, को बताना अत्यन्त कठिन है। लेकिन विभेदीकरण में कठिनाई के आधार पर अभिप्रायात्मक क्रियाओं को नकारा नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त अगर अभिप्रायात्मक क्रियाओं एवं अन्य प्रकार की क्रियाओं में भेद नहीं माना गया तो इसके परिणाम मानव-दर्शन, नीतिशास्त्र के लिए अच्छे नहीं होंगे। जिस सीमा तक अभिप्रायात्मक (intentional) एवं अन-अभिप्रायात्मक क्रियाओं (non-intentional) में भेद नहीं है उसी सीमा तक मनस् युक्त प्राणियों में एवं मनस् रहित प्राणियों में भेद नहीं कहा जायेगा। अभिप्रायात्मकता का उत्तरदायित्व (responsibility) से सम्बन्ध होने के कारण किसी क्रिया को शुभ और अशुभ कहा जाता है। यह हम जानते हैं कि पेड़पौधे एवं निर्जीव वस्तुएँ अपने व्यवहार को नियंत्रित नहीं कर सकते अतः हम उन्हें उत्तरदायी भी नहीं ठहरा सकते और न ही उनके व्यवहार को शुभ और अशुभ कह सकते हैं।
- मनस और शरीर के सम्बन्ध की व्याख्या के लिए वे अभिप्रायात्मक क्रियाएँ जिनका सम्बन्ध अनिवार्यतः दैहिक गति (जैसे कि खिड़की से बाहर कूदना) से होता है, महत्त्वपूर्ण हैं । कुछ ऐसी भी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें मानसिक क्रियाएँ कहा जाता है (जैसे कि स्मरण करना, प्रतिमा (image) बनाना, दार्शनिक समस्या पर चिन्तन करना आदि) । इनका दैहिक गति से अनिवार्य सम्बन्ध नहीं होता। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि व्यक्ति जो कुछ भी करता है वह सबका सब क्रिया की कोटि में नहीं आता क्योंकि गति एवं निश्चलता क्रिया एवं अक्रिया में भेद बताने के लिए भी 'मानव-क्रिया' पद का प्रयोग किया जाता है।
'क्रिया क्या है' इस प्रश्न की व्याख्या इस दृष्टि से कि 'क्रिया को कैसे वरिणत किया जा सकता' के द्वारा भी की जा सकती है। क्रिया वर्णन (action description) के द्वारा क्रिया के स्वरूप पर प्रकाश डालने से पूर्व हम कुछ क्रिया सदृश्य लगने वाले प्रत्ययों पर विचार करना चाहेंगे।
क्रियाएँ (actions) बनाम प्रक्रियाएँ (processes) :
क्रिया का कोई न कोई कर्ता (agent) अवश्य होता है। जैसे कि "उसने (कर्ता ने) 'अ' (क्रिया) को किया।" यही बात क्रियाओं (जैसे कि मेरा हाथ
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