Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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[ कर्म सिद्धान्त लेकिन कर्मों का दारोमदार नीयत पर है। जो जैसी नीयत करेगा उसे वैसा ही मिलेगा। पैग़म्बरे-इस्लाम का फ़रमाना है-“कर्म का दारोमदार नीयत पर है और प्रत्येक आदमी को वही मिलेगा जिसकी उसने नीयत की।" अल्लाह करण-भर बुराई, कण-भर भलाई को देखने वाला है। 'सूरे अलज़लज़ाल' में अल्लाह ने फ़रमाया है-"जो कोई एक कण समान नेकी करेगा, उसे देखेगा और जो कण समान कुकर्म करेगा, उसे देखेगा" । 'सूरे अलहज' में उल्लेख है-"वप्रबुदू रब्बाकुम वफ़ालू ला अल्लाकुम तुफलिहून"१ अर्थात् अपने रब की बंदगी करो
और भलाई के कर्म करो ताकि हित-कल्याण प्राप्त करो। इस प्रकार कुरान में तथा अन्तिम पैग़म्बर मुहम्मद साहब (सन् ५७१-६३२) ने बार-बार सत्कर्म करने का आदेश दिया है और साथ ही उस व्यक्ति को श्रेष्ठ माना है जो संयमी है
"इन्ना अकरामाकुम इन्दल्लाहि अतक़ाकुम" (अलहजारात, १२/१२) तुम में सर्वाधिक आदरणीय वह है जो तुम में सबसे अधिक संयमी है। इस प्रकार नेक कर्म करना तथा संयमपूर्वक जीवन व्यतीत करना कुरआन का संदेश है और इस्लाम धर्म का एक बुनियादी सिद्धान्त है । ईमान वालों में सबसे अच्छा उस व्यक्ति का ईमान है जिसका आचरण, व्यवहार सबसे अच्छा हो, और जो अपने घरवालों के साथ भी सद्व्यवहार करने में उत्तम हो। अल्लाह ने उस व्यक्ति को नापसन्द किया है जो संसार में दंगा-फसाद पैदा करता है । कुरआन में कहा गया है ---"वल्लाहु ला युहिब्बुल मुफसिदीन" (अल-माइदा, ६४) और अल्लाह फ़साद करने वालों से प्रेम नहीं करता 'ला इकराहा फ़िद्दीन' (अलबक़र) दीन, धर्म के मामले में कोई जोर-जबरदस्ती नहीं। इस प्रकार यहाँ अनावश्यक हिंसा को मान्यता भी नहीं दी गई। इस्लाम बल का नहीं, शान्ति का धर्म है। 'इस्लाम' शब्द का अर्थ है अमन व सलामती। यह शांति, सुरक्षा प्रदान करने वाला धर्म है और इसमें किसी एक जाति या सम्प्रदाय के लिए मार्गदर्शन नहीं, वरन् सकल मानवजाति के लिए मार्गदर्शन है। यहाँ रंगों-नस्ल का कोई भेदभाव नहीं । नेक अमल और तक़वा या संयम पर यहाँ विशेष बल दिया गया है। नेक कर्म, सत्कर्म को यहाँ व्यापक रूप में रेखांकित किया गया है । कुरआन में फरमाया गया है
"नेकी यह नहीं है कि तुमने अपने मुख पूर्व की ओर कर लिए या पश्चिम की ओर, वरन् नेकी यह है कि मनुष्य अल्लाह को, क़यामत या अन्तिम दिन को, फ़रिश्तों (देवदूतों) को, अल्लाह द्वारा अवतरित पुस्तक को, और उसके पैग़म्बरों को हृदय से-सच्चे मन से स्वीकार करे और अल्लाह के प्रेम में अपना प्रिय धन सम्बन्धियों, अनाथों, याचकों, भिक्षुकों पर, सहायता के लिए हाथ फैलाने
१-कुरान, अलहज, ७७
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