Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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इस्लाम धर्म में कर्म का स्वरूप ]
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वालों पर और दासों की-बंधकों की मुक्ति पर खर्च करे, नमाज़ क़ायम करे, ज़कात (वार्षिक लाभ का २३ प्रतिशत) दे। और नेक वे लोग हैं जो प्रण करें, वायदा करें तो उसे पूर्ण करें, और तंगी एवं मुसीबत के समय में, सत्य और असत्य के संघर्ष में सब्र करें। यह है सत्यवादी लोग, और यही लोग मुत्तक़ी हैं, संयमी हैं।"
'तक़वा' क्या है ? इस पर भी विचार करना आवश्यक है। कुरान में तक़वा करने वाले को, संयमी को इस रूप में व्यंजित किया गया है- "जो अदृश्य या गैब पर विश्वास करते हैं, ईमान लाते हैं, नमाज़ कायम करते हैं-नियमित रूप में नमाज़ पढ़ते हैं, और जो अन्न हमने उनको दिया है उसमें से व्यय करते हैं, जो किताब (कुरआन) तुम पर उतारी गई है और जो किताबें तुमसे पहले उतारी गई हैं, उन सब पर ईमान लाते हैं और आखिरत पर विश्वास करते हैं ऐसे लोग अपने रब की तरफ से सद्मार्ग पर हैं और वही पुण्य, लाभ प्राप्त करने वाले हैं।" 'सूरे पाले-इमरान' में फ़रमाया गया है- “जो प्रत्येक दशा में अपना धन खर्च करते हैं; चाहे अच्छी दशा में हों या चाहे दुर्दशा में हों, जो क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों के दोष क्षमा कर देते हैं, ऐसे नेक लोग अल्लाह को बहुत पसन्द हैं और जिनकी दशा यह है कि यदि कोई अश्लील कार्य उनसे हो जाये या किसी गुनाह को करके अपने ऊपर अत्याचार कर बैठते हैं तो अल्लाह उन्हें याद आता है और उससे वे अपने दोषों की क्षमा चाहते हैं और अल्लाह के अतिरिक्त और कौन है जो गुनाह क्षमा कर सकता है ? और वह कभी जानबूझकर अपने किये पर आग्रह नहीं करते । ऐसे लोगों का प्रत्युपकार उनके रब के पास यह है कि वह उन्हें क्षमा कर देगा और ऐसे उपवनों में उन्हें दाखिल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती होंगी और वहाँ वह सदैव रहेंगे।" क्या अच्छा बदला है नेक, सत्कर्म करने वालों के लिए।
इस्लाम धर्म में कर्मों के स्वरूप पर दो दृष्टियों से विचार किया जा सकता है
(१) ऐसे कर्म जिनका समाज से सम्बन्ध है, उन्हें लौकिक कर्म कह सकते हैं। मनुष्य परस्पर अन्य मनुष्यों से जो व्यवहार करता है वे कर्म इसी श्रेणी में आयेंगे।
(२) आध्यात्मिक कर्म वे हैं जिनका संबंध नमाज, रोज़ा, हज और ज़कात से है। मनुष्य को अल्लाह के अतिरिक्त किसी की पूजा-इबादत नहीं करनी चाहिए, अल्लाह के अतिरिक्त कोई आराध्य नहीं, यह इस्लाम धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है और इस पर अमल करना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है । इसी को
१-कुरआन : अलबकर-१७७
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