Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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इस्लाम धर्म में कर्म का स्वरूप ]
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को ज़कात देने में प्राथमिकता देनी चाहिए । ज़कात देने में गर्व या प्रदर्शन नहीं करना चाहिए ।
'हज' इस्लाम का अंतिम प्रमुख स्तम्भ है । हज प्रत्येक मुसलमान स्त्रीपुरुष पर फ़र्ज है जिसके पास आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सम्पन्नता-समर्थता है । इसे इस्लाम धर्म का सर्वोत्तम और महान् सम्मेलन समझना चाहिए, अमन व शान्ति की अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स है । इसके द्वारा इस्लाम का सार्वभौम स्वरूप उभर कर सामने आता है । मानव-प्रेम का, समानता का, विश्व बन्धुता का इससे उत्तम रूप अन्यत्र नहीं मिलता । हज के द्वारा मक्का मदीना प्रादि की यात्रा करके हाजी लोग उस युग का भी स्मरण करते हैं जिस युग में हज़रत इब्राहीम ने मक्का का निर्माण किया था । पैग़म्बर मुहम्मद साहब जीवन व्यतीत किया था, सकल समाज में प्राध्यात्मिकता की ज्योति जलाई थी ।
इस्लाम धर्म के अनुसार मनुष्य को अपने कर्म करने में पूर्ण स्वतन्त्रता है, उसे मार्ग दर्शाया गया है, अल्लाह की किताब कुरआन के द्वारा और पैग़म्बर मुहम्मद साहब के जीवन के द्वारा । उसे अच्छे-बुरे की सज़ा अवश्य मिलेगी । खुदा की ओर से नियुक्त फ़रिश्ते उसके प्रत्येक कर्म का लेखा-जोखा दर्ज करते रहते हैं और क़यामत के दिन योमे - महशर में उसके कर्मों का विवरण'एमालनामा' उसके हाथ में होगा और तदनुसार उसे स्वर्ग, नरक में डाला जायगा; उसे कर्मों का पूरा-पूरा बदला दिया जायगा । यह अवश्य स्मरणीय है कि यदि कोई अपने किए पर पश्चात्ताप करे, क्षमा मांगे और वैसा गुनाह न करे तो अल्लाह उसे क्षमा कर देता है क्योंकि वह 'रहीम' और 'रहमान' है, वह दयानिधि है, कृपासागर है । यों अल्लाह सर्वशक्तिमान है, उसकी इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता । मनुष्य को अपने-आपको अल्लाह के अधीन समझकर उसकी खुशनूदी के लिए कर्म करने चाहिए और उस मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ मनुष्य कुरआन व इस्लाम की दृष्टि में समझा जायगा जिसके कर्म उत्तम हैं, जिसका आचरण श्रेष्ठ है । "इन्नलाहा ला युगैयिरुमा बि क़ौमिन हत्ता युगैयिरु सिहि ।'
निःसंदेह अल्लाह किसी जाति की दशा को उस समय तक परिवर्तित नहीं करता जब तक कि वह अपनी दशा को नहीं परिवर्तित करती ।
१ - कुरान, अश्रद ( १३, ११)
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