Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जीवन में कर्म-सिद्धान्त की उपयोगिता ]
[ १४१ सम्बन्धित होकर अपने फल को अपने आप ही प्रकट करता है। जैसे-भंग घोटकर किसी बर्तन में रख देने से उस बर्तन को नशा नहीं होता, पर ज्योंही उस बर्तन में रखी हुई उस भंग को कोई व्यक्ति पीता है तो उसे समय पाकर अवश्य नशा होता है। उसमें तीसरी शक्ति की आवश्यकता नहीं होती। इसी प्रकार कर्म पुद्गल जीव का सम्बन्ध पाकर स्वयं अपना फल देता है
को सुख को दुःख देत है, देत कर्म झकझोर ।
उलझत सुलझत आप ही, पता पवन के जोर ।। कुछ दार्शनिक मानते हैं कि काल, स्वभाव, कर्म, पुरुषार्थ और नियति इन पांच समवाय के मिलने से जीव कर्म फल भोगता है। इन सब तर्कों से यह सिद्ध होता है कि जीव के भोग से कर्म अपना फल स्वयं देता है। इस सिद्धान्त को भारतीय आस्तिक दर्शनों के साथ-साथ बौद्ध दर्शन जैसे अनात्मवादियों ने भी स्वीकार किया है। उदाहरण के रूप में राजा मलिन्द और स्थविर नागसेन का संवाद इस प्रकार है
राजा मलिन्द स्थविर नागसेन से पूछता है कि भन्ते ! क्या कारण है कि सभी मनुष्य समान नहीं होते, कोई कम आयु वाला और कोई दीर्घ आयु वाला, कोई रोगी, कोई नीरोगी, कोई भद्दा, कोई सुन्दर, कोई प्रभावहीन, कोई प्रभावशालो, कोई निर्धन, तो कोई धनी, कोई नीच कुल वाला, तो कोई उच्च कुल वाला, कोई मूर्ख, तो कोई विद्वान् क्यों होते हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर स्थविर नागसेन ने इस प्रकार दिया।
राजन् ! क्या कारण है कि सभी वनस्पति एक जैसी नहीं है । कोई खट्टी तो कोई नमकीन, तो कोई तीखी तो कोई कड़वी क्यों होती है ? .
मलिन्द ने कहा-मैं समझता हूँ कि बीजों की भिन्नता होने से वनस्पति भी भिन्न-भिन्न होती है।
नागसेन ने कहा-राजन् ! जीवों की विविधता का कारण भी उनका अपना-अपना कर्म ही होता है। सभी जीव अपने-अपने कर्मों का फल भोगते हैं। सभी जीव अपने-अपने कर्मों के अनुसार नाना गति-योनियों में उत्पन्न होते हैं।
राजा मलिन्द और नागसेन के इस संवाद से भी यही सिद्ध होता है कि कर्म अपना फल स्वयं ही प्रदान करते हैं।' - इसी को राम भक्त महाकवि तुलसीदास ने भी स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है :
१-मलिन्द प्रश्न-बौद्ध ग्रंथ ।
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