Book Title: Jinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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कर्म प्रकृतियां और उनका जीवन के साथ संबंध ]
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३. अवधिदर्शनावरणीय-चक्षुदर्शनावरणीय और अचक्षुदर्शनावरणीय से उत्पन्न हुई विभिन्न अवस्थाओं को अनुभव न कर पाना अवधिदर्शनावरणीय है।
४. केवलदर्शनावरणीय-चैत्सिक ममत्व इसका लक्षण है ।
५. निद्रा-इन्द्रियों के विषयों में रुचि के कारण भोग भोगने के लिये सामान्य रूप से मूर्छित होना अर्थात् अपनी विस्मृति होना निद्रा है।।
६. प्रचला-निद्रित होने से बच नहीं पाना, बार-बार मछित होना प्रचला है।
- ७. निद्रा-निद्रा-भोग प्राप्ति के लिये बार-बार लालायित रहना निद्रानिद्रा है।
८. प्रचला-प्रचला-भोगेच्छा का संवरण न कर पाना प्रचला-प्रचला है ।
६. स्त्यानगद्धि-भोग भोगने की ऐसी तीव्र आकांक्षा होना जिससे अपना भान भूल जावे स्त्यानगृद्धि है ।
३. वेदनीय कर्म दो प्रकार का है
इन्द्रियों के विषयों में असाता का संवेदन करना असाता वेदनीय है और साता का संवेदन करना साता वेदनीय है।
४. मोहनीय कर्म दो प्रकार का है-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय। .
१. दर्शन मोहनीय-भोग प्रवृत्ति पर बुद्धि का जो प्रभाव होता है वह दर्शन मोहनीय है। यह प्रभाव जीवन पर तीन प्रकार से प्रकट होता है-मिथ्यात्व, मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय ।
मिथ्यात्व मोहनीय-सदा भोगों में लगे रहना, भविष्य में भी भोग मिलते रहें, ऐसी लालसा का होना इसका लक्षण है ।
सम्यकमिभ्यात्व-काम भोग अनाचरणीय है यह जानता हुआ, अनुभव करता हुआ भी उनसे विरत होने में असमर्थ होना और उनमें आनन्द मानते रहना सम्यक् मिथ्यात्व है।
__सम्यक्त्व मोहनीय-त्याग वृत्ति में लग जाने पर भी पूर्ण रूप से भोगों से विरत नहीं होना इसका लक्षण है।
२. चारित्र मोहनीय-कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) से संयुक्त होकर भोग प्रवृत्ति में लग जाना चारित्र मोहनीय का लक्षण है । यह चार प्रकार का है यथा
अनन्तानुबन्धी-मिथ्यात्व से प्रभावित भोग अवस्था को अनन्तानुबन्धी कहते हैं।
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