Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ [ १४ ] संस्कृत और नवीन हिंदी अनुवाद सहित श्रीआदिपुराणजी छप रहे हैं । न्योछावर १४) रु. डाक खर्च जुदा । इस ग्रंथ के मूल श्लोक अनुमान १३००० के हैं और इसकी वचनिका जयपुरवाले पांडत दौलतरामजी कृत २५००० श्लोकों में बनी हुई हैं । पहिले इस वचनिका के छपानेका विचार किया था परंतु मूल प्रथसे मिलाने पर मालूम हुवा कि प. दौलतरामजी ये पूरा अनुवाद नहिं किया । भाषा भी ढूंढाडी है सब देशके भाई नहीं समझते इसकारण अतिशय सरल सुंदर अतिउपयोगी नवीन वचनिका बनवाकर छपाना प्रारंभ किया है। वचनिकाके ऊपर सस्कृत श्लोक छपनेसे सोनेमें सुगध हो गई है। आप देखेंगे तो खुश हो जांयगे । इसके मूल सहित अनुमानं५२००० श्लोक और२००० पृष्ट होगे इतने बढे ग्रंथका छपाना सहज नहीं है हर दूसरे महीने ८०-१०० या १२५ पृष्ठ छपते हैं सो हम आजतक छपेहुये कुल पत्रे भेजकर ५) रुपये मगा लेंगे, उसके बाद हर दूसरे महीने जितने पत्र छपेंगे भेजते जायगे ७२० पृष्ट पहुचनेपर फिर ५) रु. पेशगी मगा लेंगे। इसीतरह ग्रंथ पूराकर दिया जायगा । यह प्रथ ऐसा उपयोगी हैं कि यह सबके घरमें स्वाध्यायार्थ बिराजमान रहे । यदि ऐसा नहीं हो सकै तौ प्रत्येक मंदिरजी व चैत्यालय में तो अवश्य ही एक २ प्रति मंगाकर रखना चाहिये । 2 P पत्र भेजने का पता - पन्नालाल बाकलीवाल, मालिक - स्याद्वादरत्नाकरकार्यालय बनारस सिटी ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115