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ही उन्हें कितनी दौड धूप करनी पड़ी है। फिर न नाने अपने लिए वे क्या करेंगे ? मनुष्य अपने स्वार्थके पीछे सब कुछ भूल जाता है।.. इसमें कुछ सन्देह नहीं । ठीक यही हाल पूनमचन्दका हुआ है । आइये पाठक ! हम और आप भी पूनमचन्दके विवाहकातमाशा देखें।
विपत्ति। मोतीलालका विवाह हुए आज दो वर्ष बीत गये, पर उसने आज. तक अपनी स्त्रीके साथ कभी प्रेम संभाषण नहीं क्यिा । हम उसके चालचलनका हाल पहले लिख चुके है । पाठक जान सकेंगे कि निसका हृदय किसी दूसरेके वश है, वा वह स्वयं अपनेको दूसरेके लिए सौंप चुका है, फिर उसे अपने घरकी कुछ खवर नहीं रहती। उसे अपनी सुन्दर और सुखद वस्तु भी बुरी जान पड़ती है। आपने. यदि यशोधर महाराजकी जीवनी पडी है तो आपको अमृतमनीकी कथा इसके लिए उत्तम आदर्श जान पडेगी । मोतीलाल अपने हृदयको दूसरेके लिए सौप चुका है। अब वह कञ्चनपर कैसे प्रेम कर सकता है ? वेचारी कञ्चन चाहती है कि मैं एक वक्त अपने प्राजप्यारेसे इस बातका कारण समझू कि वे मुझसे क्यों नाराज है ? पर मोतीलाल उसे इतना अवसर भी नहीं देता । उसके लंगोटिये यार और उसे दिनरात बुरी बातें सुझाया करते है, जिससे वह और भी निर्दयता धारण किये जाता है।
बेचारी कञ्चन जैसे जैसे वढी होती जाती है वैसे वैसे चिन्ता और मानसीक विकारोंकी ज्वालासे उसका हृदय लला जाता है। वह