Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 68
________________ (५०) विशुद्ध और पतित न होने देता ज्ञान प्रकटाता है, गिरिधर धर्म प्रेम एक सत्य नगवीच परमात्म तत्त्वमें जो सहज मिलाता है । गिरधर शम्मा झालरापाटन । संतानशिक्षा। माता शत्रुः पिता वरी येन वालो न पाठितः । " सन्तान उत्पन्न करके उसके शरीरकी रक्षा करना, उसे पुष्ट करना और उसके पालन पोपणके लिए धन इकठ्ठा करना ही सन्तानके प्रति माता पिताका कर्तव्य नहीं है। किन्तु जो जीवनकी अपेक्षा बहुत मूल्यवान है और जिससे मानव जीवन सार्थक होता है उस अमूल्य ज्ञान और धर्मोपदेशसे अपनी सन्तानको भूपित करना माता पिताका प्रधान कर्त्तव्य है।" ___ सन्तानके प्रति माताका कर्त्तव्य दो प्रकार है । प्रथम-सन्तानपालन अर्थात् सन्तानकी शारीरिक उन्नति और द्वितीय-संतानशिक्षा और चरित्रगठन । सन्तान पालनके सम्बन्धमें इस समय न लिखकर फिर कभी लिखेंगे । आज केवल सन्तानशिक्षा और चरित्रगठनके सम्बन्धमें कुछ लिखते है। गृह ही मनुष्यका प्रथम और प्रधान विद्यालय है। माता उसकी मुख्य अध्यापिका है । इसी विद्यालयमें मानव हृदयमें सर्व प्रकारके गुण और दोषका वीज अङ्कुरित होता है । किसी एक विद्वानने निश्चय किया है कि सन्तान, डेढ वर्षसे ढाई वर्षके बीचमें संसारके पदार्थगत और अपने तथा परके मानसीक प्रकृतिगत ज्ञानका

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