Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 79
________________ ( ११ ) उठकर कहा-" भाइयो, आलस्यको छोड़ो और अपनी पुरानी एहपर चलो। जैनमित्रका हायसे लिखवाना क्या बड़ी बात है ? जब छापा न था । तत्र क्या अपने पुरखोंका काम न चलता था । मेरी रायमें जैनामित्र जरूर हायसे निकलना चाहिए । यह सुनकर मुझे उस चूहे की बात याद आगई, जिसने बिल्ली के गलेमें एक घंटी वाघ देनेकी तरकीब बतलाई थी । ( १ ) महारनपुरके लाला जम्बूप्रसादजीने दो पंडितोंको रख छोड़े है । वे स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन कर ढशसे चार बजेतक शास्त्रजी लिखते है । यदि वीचमें पेशाब वगैरेहकी हाजत होती है तो उसे रफा करके फिर स्नान करते हैं, तत्र लिखते है । पाठशाला के विद्यार्थी मी स्नानादिसे शुद्ध होकर एक खाम वक्त में जैन शास्त्र पढ़ते है ! जैनगजटमें यह समाचार पढ़कर मैं बहुत खुश हुआ । मेरी रायमें लाला साहबको इस विषयमें कुछ और तरक्की करना चाहिए। विलायतमे हिन्दू लोगोंके लिए एक तरहके बिस्कुट बनकर आते हैं। उनके वाक्सपर लिखा रहता हैं कि 'उसके बनानेमें मनुष्यके हाथका स्पर्श नहीं हुआ ।' जब आप शुद्धताकी चरम सीमापर पहुँचना चाहते हैं, तत्र अपने लेखकों को ऐसा अभ्यास कराइए, जिससे लिखते समय ग्रन्यसे उनका स्पर्ग भी न हो । क्योंकि आखिर तो वे ग्रन्थ लेखनसे जीविका करनेवाले है-स्नानादिसे कहातक शुद्ध हो सकते है ? विलायती कागज के समान देशी कागज भी बहुत अशुद्ध होते है, इस लिए पवित्रकागजोंका तो आपने इन्तजाम कर ही लिया होगा । न किया हो तो अत्र कर लीजिए और किसी शुद्धा.

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