Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 106
________________ महापापका कोई भयानक दण्ड देनेकी कोशिश करेंगे ? निससे ऐसा भत्याचार न हो। मैं आशा करता हूं कि जयपुरकी पन्चायती इस बातपर अवश्य खयाल करेगी कि निस स्थानको टोडरमलनी, अमरचन्दनी,जयचन्दजी आदि पुरुषरत्नोंने अवतार लेकर पवित्र किया है उसकी छातीपर इस महाकलंकका दाग न लगने देगी। एक हितैषी। विवाहमें दान-गोदेगांव निवासी श्रीयुक्त मोतीलालनी दगड़ा- . का माघ विदी ८ को विवाह था । आपने चाहा कि हमारा विवाह नैनविवाह पद्धतिके अनुसार हो। इसपर लड़कीका पिता स. म्मत नहीं हुआ । एक ओरका यह दुराग्रह देखकर आप भी अपने धार्मिक प्रेमको नहीं दवा सके । आपने साफ कह दिया कि जैनपद्धतिके अनुसार विवाह होगा तब ही हम विवाह करेंगे नहीं तो हमें कुछ दरकार नहीं है। आपकी इस दृढ़तापर लड़कीके पिताको नबरन यह स्वीकार करना ही पड़ा । विवाह ठीक भेन. विधिके अनुसार सम्पादन किया गया । उस समय आपने जैन संस्थाओंके किए भी कुछ दान देकर अपनी उदारताका परिचय दिया है । वह सबके अनुकरण करने योग्य है। १०१) नायडोंगरीके जैनमन्दिर। ११)। नैनसिद्धान्त पा० मोरेना । २१) सरस्वतीभवनआरा । ११) श्रीऋषभब्रह्मचर्याश्रमं । ११) स्याद्वाद पाठशालाकाशी। ५) खण्डेलवाल पंच महासमा । लालचन्द काला मालेगांव । खेद और आनन्द दहलीमें करीब ढाई महीनेसे विद्याप्रचारिणीजैनसभा स्थापित है। उसके सभापति श्रीयुक्त रिक्खमलनी और उपसभापति लाला रामजीदास कागजी है । सभाका उद्देश्य

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