Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 109
________________ : हिन्दविश्वविद्यालय के लिए वम्बईके निवासियोने लाभग टाई लाख रुपया दिया है। भारतवर्षके प्रधान व्यापारकी जगहसे बहुत थोडा द्वन्य मिला देखकर बड़ी निराशा होती है । जिन वम्ब इके धनिकानें भारतवर्षके अकर्मण्य दलको मालामाल बना दिया, जिनसे कि आज देशका कुछ भी उपकार न होकर उल्टा अपकार हो रहा है, उनके लिए देशको उन्नतिके मूल हिन्दूविश्वविद्यालयके लिए इतना योड़ा द्रव्य देना क्या संतोपकारक कहा ना सकता है? नहीं । आशा है बम्बईवासी जिस शहरमें रहते है उसकी योग्यताके माफिक धन द्वारा विद्यालयको उपकृत करेंगे। ___ इन्दौर-की प्रतिष्ठा निर्विघ्न समाप्त होगई । प्रतिष्ठाकारक बाबा गीलचन्दनी जयपुर निवासी थे। सुशीकी बात है कि बाबा जीने संस्कृत न जानकर भी प्रतिष्ठा निर्विघ्न समाप्त करवादी । आपके पास एक भाषाका प्रतिष्ठापाठ है । सुनते है कि उसीसे आपने प्रतिष्ठा करवाई थी। अच्छा हो यदि वावाजी उस प्रतिष्ठापाठका सर्व साधारणमें प्रचार करदें, जिससे प्रतिष्ठा करानेवालोंको भी सुगमता हो जायगी और जो प्रतिष्ठाकारकोसे वर्तमानके प्रतिष्ठाचार्य हजारों रूपया ठहराकर प्रतिष्ठा करवाते हैं उनका पैसा मी वच जायगा । प्रतिष्ठामें पन्द्रह हजारके लग भग जनसमुदाय एकत्रित हुआ था । सुनते है कि वाहरकी संस्थावालोंको भी कुछ सहायता मिली है । कितनी यह टीक मालूम नहीं । नवीन पत्र-फिरोजपुरकी जीवदयाप्रचारकसभाकी ओरसे एक मासिक पत्रिका निकालना निश्चित किया गया है । यह हिन्दी,

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