Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 113
________________ (९५ ) किहमारे भाई सब तरहके चित्र यहीसे मंगवानेकी कृपा करते रहेंगे। मेनेजर-श्रीवर्द्धमानजनविद्यालय जयपुर. जैन पाठशालाओंमें जैनधर्मले जानकार अध्यापकोंकी बहुत आवश्यता रहती है। न्याय व्याकरणादिक जानकार होने पर भी वे धार्मिक सिद्धान्तसे आनभिज्ञ रहते हैं। इस लिए जैनधर्मकी उन्नतिमें बड़ी बाधा पड़ती है। हमने ऐसे पंडितोंके लिए तया गुजराती, मराठी, हिन्दी, ट्रेनिंगकॉलेन या हाईस्कूलमें पड़े हुए मास्टरों और विद्यार्थियोंके लिए जैनधर्मके सिखानेका प्रवन्ध किया है। उन्हें सब विषयका पत्र व्यहार नीचे पतेसे करना चाहिए। वुद्धलाल श्रावक, हागगंज दमोह. हम सब भाइयोंसे प्रार्थना करते हैं कि वे अपने अपने गांवके पञ्चायती समाचारोंके भेजनेकी कृपा करें । हम उन्हें सहर्ष छोपेंगे। हमारे इस पत्रका यह खास उद्देश्य है कि इसमें जाति सन्वन्धी हर प्रकारके अगड़े प्रकाशित किये नाकर और उनसे होनेवाली नातिकी हालत दिखल कर उनके मिबनेका उपाय किया जाय । क्योंकि हमारी जातिके अध.पतनके कारण ये घरेलू झगड़े ही हैं। नबतक ये नष्ट न होंगे तबतक जातिकी उन्नति होना कष्ट साध्य ही नहीं किन्तु असंभव है । आशा है कि पाठक हमारी इस प्रार्थनापर ध्यान देंगे। नातिका एक तुच्छ सेवक उदयलाल काशलीवाल.

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