Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 98
________________ मुझे किस मार्गपर चलनेसे लाभ होगा ? तब वह क्या अपना, क्या अपनी सतानका और क्या अपने घरका सुधार कर सकेगी? यह कौन नहीं जानता की स्त्रीशिक्षाके न होनेसे भारतकी जातियां दिनपर दिन कैसी कैसी भयंकर कुरीतियोंका घर बनी जा रही हैं। क्या यह कभी सभव था कि जहांकी भूमिको सीता, मैनासुन्दरी, अञ्जना, द्रौपदी, मनोरमा आदि देवियोंने भूपित की थी-अपने चरणोंसे पवित्र की थी. . वहाकी स्त्रिया अब ऐसी उत्पन्न होंगी कि वे स्वार्थके वश हो अपनी प्यारी पुत्रियोंको बूढे, मूर्ख, कुरूप आदिके गले वाधकर उनके सुखमार्गमे काटे बनेगी ? पर यह सब इसी एक स्त्रीशिक्षाके न होनेका प्रभाव। आरै इसीसे उन्हें अपना हानि लाभ नहीं सूझ पड़ता । इस लिए क्यों यह जरूरी नहीं माना जाय कि स्त्रीशिक्षाकी बड़ी जरूरत है और बहुत बड़ी जरूरत है । स्त्री पतिकी अगिनी मानी जाती है, पर यह याद रहे कि अनपढ़ी स्त्री अर्धाङ्गिनी कभी नहीं हो सकती। क्योंकि उसके द्वारा कीसी तरहकी मदद पतिको नहीं मिलती है। विना विद्याके स्त्री सिवाग रोटी बनाने और पानी भरनेके किसी कामकी नहीं होती। उसे यदि इनके सिवा कुछ काम भी सूझता है तो वह दूसरोंकी निंदा करनेका । चार निठल्ली औरतें शामिल बैठकर इधर उधरके निंदा करना अपना काम समझती हैं और जो इस कामको नियादह खूबीसे करती है वही इनमें चौधरानी समझी जाती है। ये मदिरमें दर्शन करने और शास्त्र सुनने जाती हैं परन्तु चित्त निन्दामय होनेके कारण न हृदयसे वे दर्शन कर सकती है और न शास्त्रके उपदेश को ही हृदयमें जमा सकती है । ऐसी सूरतमें जैसा कुछ पुन्यफल मिलना चाहिए वह नहीं मिलता, क्या इन बातोंके सुनने पर भी यह संदेह

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