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नोंकी पुत्रियाँ जो उनके घरोंमें आती है वे जैन संस्कारसे शून्य होती हैं, जिससे भावी सन्तान भी जैनत्वशन्य ही रहती हैं। धम्मोन्नतिके प्रेमियो ! जरा विचारो कि इस जातिवन्धनसे धर्मको कितनी हानि पहुँची है। इसे हठ और हानिकारक रूढ़ि न । कहें तो क्या कहा जावे १ अतः यदि आप धम्मोन्नतिके इच्छुक है तो वर्णाश्रम धर्मको दृढ कीजिए और जातिवन्धनको उच्छेद कर जैनधर्मकी वात्सल्य डोरसे जैननातिको बलिष्ठ करनेका उद्योग कीजिए-आदि।" यह अंश हमारे बहुतसे भोले भाइयोंको बुरा जान पड़ा । उन्होंने शास्त्रकी मर्यादा और जातिके हानि लाभकी कुछ परवा न कर एक दम शोर मचा दिया । संभव है, उन्हें अपनी रूढिके सामने इस महत्त्वपूर्ण वातकी कुछ कीमत न जची हो! पर उन्हें इतना विचार तो अवश्य करना चाहिए था कि-समाजका प्रतिष्ठित विद्वान जो बात अपने मुहसे कहेगा वह बहुत ही विचार और अनुभवके साथ । उसे अपने समानकी वर्तमान परिस्थितिपर बड़ा भारी विचार रखना पड़ता है। उसमें भी अपठित और बहुत दिनोंसे अज्ञानके गम जो समाज गिरा हुआ है
उसकी स्थितिपर तो और भी अधिक । फिर उसके द्वारा क्या हमें किसी प्रकार धक्का पहुच सकता है ? जो स्वयं समाजकी सेवा करता है और उसके उन्नत करनेकी कोशिश करता है वह क्या उसका अहित भी चाहेगा ? इतनेपर भी यदि उसके विचार हमारे शास्त्रोंसे मिल जावें तव तो हमें वे मानलेने चाहिएं। यदि वे इसपर विचार करते और आदिपुराण सरखेि आपग्रन्थकी मर्यादाका कुछ गौरव करते तो कभी उन्हें इस हलचलके करनेकी