Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 56
________________ ( ३८ ) यह कह कर, कि अच्छा अब यही सो रहो सवेरे देखा जायगा कि क्या होता था, सोगया । तारा भी वहीं पर लेट गई। पर भयभीत उसका हृदय अभी भी शान्त नहीं हुआ। वह और भी अधिक व्याकुल होगया । तारासे चुप न रहा गया । उसने बातोंका सिल सिला छेड़ ही तो दिया । ___ वह बोली-मोतीलाल ! देखो तो अपना घर थोड़े ही दिनोंमे कैसा सूना सूनासा होगया ? जिधर मैं आंख उठाकर देखती हू मुझे तो उधर ही वड़ा डरावना लगता है। मोतीलाल-भाग्यका ऐसा ही फेर कहना चाहिए। तारा-यह देखकर वहुत दुःख होता है कि इतने बड़े घरमें केवल तुम और मै ही बची हूं। और फिर देखो तो दोनों ही अभागेदोनों ही दुखी है। कैसी दैवी घटना ? हां क्यों मोतीलाल ! तुम अब कभी वेचारी वहूकी भी याद करते हो ? देखो, न जाने उसे क्या सूझी जो वह आत्महत्या करके मर गई ? वह भी हमारे देखते देखते ! __ मोतीलाल-उसके भाग्यहीमें ऐसा लिखा था, इसका हम क्या करें। __ तारा-मोतीलाल ! वह थी वडी सुन्दर । आखिर उससे भी हमारे घरकी बहुत कुछ शोभा थी । देखो सुन्दरता भी क्या चीज है जो तुरत दूसरेके मनको अपनी और अट खींच लेती है ? हा मोतीलाल तुमसे मै एक बात पूछती हूं उसे ठीक ठीक बताना १ मुझसे बहू अधिक सुन्दरी थी अथवा मै उससे अधिक हूँ?

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