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(४५) है। इस जातिके धनाढयोंके हृदयमें करुणादेवीका वास बिल्कुल नहीं है। तभी तो वे जातिके अनाथोंकी रक्षा नहीं करते, उन्हें शिक्षा प्राप्तिके सुगम मार्गमें नहीं लगाते और न इस वातकी परवा करते कि अपनी जातिम विना उद्योगके दु खसे निर्वाह करने वाले जैनी भाई कितने है? यदि बड़े बड़े कारखाने खोले जावें और गरीब जातिभाई उनमें कामपर लगाये जावें तो उनका निर्वाह और जातिकी दरिद्रता नष्ट होने लगे। पर उनमें प्रेमके-जातीय प्रेमके-विना इतनी करणा कैसे हो सकती है ?
एक समय पांचों इद्रियोंमें अगडा खड़ा होगया । प्रत्येक इन्द्री अपनी अपनी प्रधानताका कीर्तन करने लगी कि मेरे न होनेसे शरीरका कोई भी काम नहीं चल सकता । इसी कलहके कारण एक दिन स्पर्शन इद्रियने स्पर्श करना, जीभने स्वाद लेना, नाकने गंध लेना, आखने देखना और कानने सुनना छोड़ दिया। परिणाम यह हुआ कि निष्क्रिय रहनेसे वे सब शिथिल पड़ गई। तब उन्हें मालूम होगया कि जबतक हम बिना विरोधके एकतासे आपना कार्य करती रही तबतक हृष्ट पुष्ट और कार्यतत्पर वनी रहीं। पर जब हममें विरोध फैल गया तब एक ही साथ हम सब निवल होगई । ठीक यही दशा खण्डेलवाल जातिकी हो रही है। जवतक उसमें फूट रहेगी तवनक वह किसी प्रकारकी उन्नति नहीं कर सकती।
आपको गंजीफा अर्थात् तास खेलनेका प्रसंग अवश्य मिला होगा । कहिये, आपने इस खेलसे किस प्रकारकी शिक्षा ग्रहण की ? इन पत्तोंके खेलमें भी एक अद्भुत शिक्षा दी