Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 62
________________ (४४) दुश्मनी होगई । फूटने समूह शक्तिके सर्वस्वको अपहरण कर लिया । सहनशीलताका सर्व नाश होगया । मानकपायके वश हो । प्रत्येक अपनेको अहमिन्द्र समझने लगा । परस्पर सहायताकी आशापर पानी फिर गया । इसी प्रकार इस जातिसे उपगृहन और स्थितिकरण अंग भी विदा होगये । अर्थात् साधर्मियोंके दोषोंको ढांकना और उन्हें धर्मसे डिगते देखकर धर्मके सन्मुख करना इन धर्मवृद्धिके दोनों कारणोंका अभाव होगया । ___ इग्लैंड, जर्मनी, जापान आदि देशोंमें जो आश्चर्यकारी उन्नति हो रही है उसका कारण एकता है । सहस्रों क्वापरेटिव सोसाइटी, कंपनिया, मिलें, जिनसे लौकिक उन्नति होती है और लाखों मनुष्योंका निर्वाह होता है, एकताकी शक्तिसे चलते है । सब जानते है कि विलायतवाले अपने कला कौशल और पुरुषार्थके वलसे संसारका धन अपने देशकी ओर ले जा रहे है और उसे चकित कर रहे है तो भी हम मोह निद्रासे जागृत नहीं होते। देवने हमारे पाव पकड़ रक्खे है। खण्डेलवाल जातिमें धनकी कमी नहीं है, तो भी कोई कंपनी, मिल, बैंक आदि इस जातिके धनवानोंने स्थापित की हो यह देखने में नहीं आता । इसीसे दिनोंदिन यह जाति दरिद्रताके ग्रहसे ग्रसित होती जा रही है। पुरानी शास्त्र विरुद्ध रूढ़ियोंके घुनसे हम घुने जा रहे है । यदि कोई सुधार करना चाहता है तो रूढिके गुलाम उसका कठ पकड़ लेते हैं और बुरी तरह सामना करने लगते है। जैसा कि पाठक, " बडनगरमें विद्याशत्रुओंकी धींगाधींगी " से मालूम कर चुके है । उद्योग प्रधान कार्यालय खोलनेका साहस नहीं होता । इसका कारण अविद्या और अविश्वास

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