Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 55
________________ ( ३७ ) एक वजा । ताराकी नींद टूटी । उसकी आखोंमें पहलेहीसे नींद कहा थी पर कल्पना कर लीजिये कि वह अपनी शय्यापर पड़ी है । इस लिये देखनेवालोंको तो निद्रितही जान पड़ेगी । उसने उठकर अपने कमरे के कवाड खोले और वह धीरे धीरे मकानकी सीढिया तय करती हुई बचिके मजिलमें आ पहुची । वहीं पर मोतीलालके सोनेकी जगह थी । उसने दरवाजेके पास खडी होकर मोतीलालको पुकारना चाहा, पर सहसा उसकी हिम्मत न पडी । न जाने क्या सोच समझकर वह पीछी अपने कमरे में चली गई और शय्यापर आ गिरी । पर अब उसे नींद नहीं आती । वह उधर इधर करवटें बदलने लगी । उसका हृदय वेचेन होगया । वह हिम्मत करके उठती है पर पीछी न जाने क्यों बैठ जाती हैं । वह कवाड खोलकर कुछ सीढ़िया उतरती है और पीछी लौट आती है । ग्रोंही करते करते उसे दो घंटे होगये । अबकी बार वह अपने दिलको मज़बूत करके उठी और बिना किसी रुकावटके नीचे उतर आई। उसने मोतीलाल के कमरेके पास खडी होकर धीरे धीरे कवाड खट खटाये । मोतीलाल भरनींद में था । पर किसी भयानक स्वप्नके देखनेसे वह हापता हापता उठ बैठा 1 कवाङकी खटखट आवाज सुनकर उसे कुछ सन्देह हुआ । उसने भीतरही से पुकारा- कौन है ' तारा धीरेसे वोली कि यह तो मै हू, जरा कवाड खोलो । मोतीलालने ताराका स्वर पहचानकर कवाड खोल दिये । तारा भीतर जाकर बैठ गई और हापते हापते उसने कहा कि मै ऊपर सोती हुई थी । न जाने एका एक क्या धड़ाका हुआ । मुझे डर लगने लगा । इसीसे मै यहा आगई । मोतीलालने 1

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