________________
( १२ )
कञ्चन कहती है अब मुझसे यह वेदना नहीं सही जाती।
"
इस
मैने जितना कुछ सहा वह केवल एक पापिनी आशाके भरोसे पर । पर अब मुझे स्वप्न में भी यह आशा नहीं होती कि मुझे कभी प्राणनाथक सेवाका सौभाग्य मिलेगा ? मुझे वे अपनी समझकर अपनायेंगे ? फिर इस पापी जीवनको ही रखकर मै क्या करूंगी ? जबमेरा ससारमें कोई अवलम्ब ही नहीं तब मैं किसके लिए इस प्राणभारको उठाकर पृथ्वीको बोझा मारूं ? जब मेरा भाग्य सब तरह फूट ही गया है तब मै ही जीकर क्या करूंगी ? पापी दैव ! तेरे समान संसार में कोई निर्दयी नहीं है। तूं अपनी सत्ता के सामने किसीकी नहीं चलने देता । तू जो चाहता है वही कर दिखाता है । तेरे निर्दय संकल्प को धिक्कार है । कहते कहते कञ्चनकी आखोंसे आसुओं की धार वह चली । वह आकाशकी ओर मुहॅ उठा कर बोली- परमात्मा । मै विपत्तिकी मारी एक अनाथिनी हूं। संसार में मेरा कोई नहीं है । मेरा जीवन ही मुझे शूलसा लग रहा है। मुझे जीनेमें सार नहीं दीखता । मैंने आजतक जो कठिनसे कठिन दुःख सहा है वह अपनी धर्मरक्षा के लिए । पर अब मै नहीं सहूगी । मझसे यह जीवनभरका दुःख देखा नहीं जाता । इस लिए मैं अब किसी ओर ही उपायका सहारा लुंगी जिससे सदाके लिए ही दुःखसे छुटकारा पा सकूं। उस उपायके पहले मै आपसे एक प्रार्थना करूं गी। वह यह है कि मै आजतक किसी भी अवस्थामै रही हूं पर तब भी मेरा हृदय पूर्ण रूपसे शुद्ध रहा है । मैने दुःखपर दुःख भोगें हैं, पर आजतक मलीन वासनाको अपने हृदयमें स्थान नहीं दिया है । मै आपसे क्या निवेदन करूं । आप तो सब कुछ जानते है । संभव
1