Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 48
________________ यह उत्तर दिया जा सकता है कि अबोध दशाका धर्म अनिर्वार्य होता है। तारा अबोध है-बालिका है । इसीसे वह कुछ नहीं समझती । तारा ! तू अभागिनी थी तब ही तो तेरी माताने लोभके वश होकर तुझे कालके हाथ सौंपी-तेरे गलेपर छुरी चलाई । अव तु जन्मपर ऐसी रहकर अपनी माताका-पिशाचिनी माताका-उपकार मानती रहना । पर तारा ! तेरा भी एक दोष है-भयंकर अपराध । है। वह यह कि तूने नौ महीने अपनी माताके पेटमें रहकर उसे वेहद दुःख दिया था । संभव है उसने तुझे उसीका प्रायश्चित्त दिया हो ! उसे तूं भोग । इसमें सन्देह नहीं कि तेरा भाग्य तो अब जीवन भरके लिए फूट गया है। (८) आत्महत्या। कञ्चन प्रयत्न करते करते हारगई। पर मोतीलाल किसी तरह सुपथ पर नहीं आया। अन्तमें उसे निराश होजाना पडा । मोतीलालने क्यों इतनी निर्दयता धारण की ? इसका कारण है। यह हम पहले लिख आये है कि मोतीलालका चाल चलन और स्वभाव अच्छा नहीं था। वह बुरी सङ्गतिमें पडकर लुच्चे और बदमाशोंके हाथकी कठपुतली होगया था। उसे वे जितना नचाते थे वह उसी तरह नाचता -उसे स्वयंकी बुद्धि कुछ नहीं थी। मूोंके साथ खुशामदी दाल गल जाना कुछ आश्चर्यकी बात नहीं । ऐसे उदाआज भी बहुत मिल सकते है।

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