Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 52
________________ (३४) आया। उसने बडी मुष्किलसे रोते रोते यह कह कर कि इस अमागिनी पर क्ष... ....मा. .....क.......र.......ना........क्ष........ मा.......कर.......और झटसे कुछ अपने मुहमें डालकर ऊपरसे पानी पी लिया। देखते देखते ही उसके शरीरकी ज्योत्स्ना म्लान हो चली। (८) भयंकर परिणाम । पाठक ! कञ्चनकी जीवनलीलाके साथ साथ हमारी यह छोटीसी आख्यायिका भी समाप्त होती है, पर एक जरूरी घटनाका उल्लेख करना वाकी रह जाता है। इस लिए इस परिच्छेदमें हम उसीका उल्लेख करते है। __ पूनमचन्दको मरे आज आठ वर्षके लग भग बीत चुके है। ' ताराकी उनके समयमें नो अवस्था थी वह अब नहीं । रही उसने अब बालभाव छोड़कर युवावस्थामें पदार्पण किया है । उसके भावोंमें पहलेसे अब जमीन आशमानका अन्तर है । अव वह पति पत्नीके भावको भी समझने लगी है। कामकी कृपासे अब उसमें अपूर्व श्रीका आविर्भाव दीख पड़ता है। उसके निप्कलंक मुखचन्द्रकी ज्योत्स्नासे उसका हृदय प्रकाशित हो उठा है। वह उसके उजालेमें न जाने किसे ढूंढ रही है । पर उसके मुखकी निराशा और हृदयकी व्यग्रतासे जान पड़ता है कि उसे अपनी ए. प्रिय वस्तुको प्राप्ति नहीं हुई । उसके सुन्दर लोचन अंगूठीमें - जड़े हुए हीरेकी तरह दमकने लगे । बेचारा खञ्जनतो उन्हें देख

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