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( २३ ) अपराधके एक दीन अबलापर ऐसा घोर अत्याचार करना क्या भापको उचित जान पड़ता है। . . मोतीलाल-मुझे अभी इन सब बातोंके उत्तर देनेकी फुरसत नहीं है। इस समय मेरा हाथ छोड दो। __ कञ्चन--प्यारे! आप मुझे कुछ भी कहे पर जवतक आप मेरी वातोंका उत्तर न देंगे तबतक मै आपको न जाने दगी । मैने बहुत दुःख उठा लिये । अब मै नहीं सह सकती । आप देखते नहीं कि मेरी शारीरिक दशा कैसी विगड गई है। पर फिर भी उसपर आपको दया नहीं आती। __मोतीलाल-तो क्या यह जबरदस्ती है जो मेरा हाथ छोडना । नहीं चाहतीं छोड़ो । मुझे बहुत देरी होगई है । हा तुम्हारी वातोक्न उत्तर फिर कभी दूगा। __ कञ्चन-नाथ । आप यह क्या कहते है । मैं तो आपसे केवल प्रेमकी मिक्षा मांगती हूं। मुझे जबरदस्ती करके क्या करना है ? मै आपका हाथ छोडनेके लिए तैयार हूं! पर यह कह दीजिए कि मुझपर कृपा क्यों नहीं करते? मुझसे क्या ऐसी भारी भूल बनपड़ी है? वतलाइये मै 'उसकी माफी मागू
मोतीलाल-जान पडता है कि तुम बिना उत्तर पाये मेरा हाथ न छोडोगी । आखिर होतो स्त्री ही न अस्तु । सुनो-मै तुम्हारी संव वातोंका उत्तर देकर मामला तय किए देता हू । तुम मुझे चाहती हो-मुझपर प्रेम करती हो-यह सही है । पर मै तुम्हें नहीं चाहता। तुम पूछोगी, क्यों ? इसका मेरे पास कुछ जबाव नहीं है । तुम, कहोगी फिर विवाह किस लिए किया था। इसका उत्तर पिताजीदे सकते