Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 26
________________ लगे तो बड़ा भारी दोष आकर उपस्थित होता है। आपके ही अखण्डसिद्धान्तमें वाधा उपस्थित होती है । इस लिए जहांतक मैं समझा हूं कह सकता हूं न तो ज्ञान नष्ट हुआ है और न पूर्व ही। उसी तरह न ज्ञानी ही नष्ट होगये है। जो मनुष्य ऐसा मानते हैं उनके लिए तो सचमुच ही सब नष्ट होगया है, यह मैं अवश्य मानता हूं। आत्माकी अनन्तशक्ति, अनन्तबलमें-अनन्तवीर्यमें निसे प्रतीति-विश्वास-श्रद्धा नहीं है उसके लिए तो सब कुछ नष्ट होगया है, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। पर सबके लिए सब नष्ट होगया है यह नहीं माना जा सकता । यह केवल कल्पना है। ___ जो मनुष्य यह मानता है कि यह वस्तु कभी मिलेगी ही नहीं उसे तो वह कभी नहीं मिलेगी। क्योंकि यह कहावत प्रसिद्ध है कि रोता जाय और मरेकी खबर लेकर आवे । । हे अधमोद्धारक | इसमें यदि मेरी भल हो तो उसे मुझे समझाइये । पर इस विषयमें तो मेरा अन्तःकरण ऊपरके विचारोंसे ही सहमत होता है। और फिर भी यदि भूल हो तो फायदेकी ओर दृष्टि रखनेवालेकी भूल होती ही है । इस लिये चिन्ताकी कुछ बात नहीं। हे प्रभो ! लिखनेके लिए तो बहुत कुछ है, पर वह आपपर अविदित नहीं है । यह सब आप जानते हुए भी मौन साधे हुए है । इसीलिए मुझे लिखना पड़ा है। हे भगवन् ! मै अज्ञानी हूं-बालक हं-छमस्थ है । इस लिए मेरे लिखनेमें वडे भारी अविनयके होनेकी संभावना है। बालककी तरह वोलनेमें भी वाचाल होनेका भय बना हुआ रहता है । इस लिए . आप उस तरफ लक्ष न देकर मेरे हृदयके भावोंकी ओर दृष्टि क

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