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यदि अब भी आप इसे इसी स्थितिमें बहुत दिनोंतक रक्खेंगे तो इसका क्या परिणाम होगा यह कहना जरा कठिन है।
आप सब जानते हो। आपकी यह गहरी चुपकी यह बहुत दिनोंकी मौन अवश्य किसी प्रयोजनको लिए हुए है। पर अब यह छोडनी पडेगी । हे प्रभो । हे अनाथरक्षक । अब इस मौनका त्याग करके इधर आइये ! अवश्य आइये ! ! और फिरसे ज्ञानदीपकका प्रकाश कीजिए । फिरसे संसारकी सत्य और पवित्र मार्गपर श्रद्धा कराइये । आपके द्वारा प्रकाशित ज्ञानरूपी सूर्यको अज्ञान रूपी बादलोने बहुत दिनोंसे आच्छादित कर रक्खा है । अभीतक तो उस प्रकाशकी ज्योती कुछ कुछ टिमटिमा रही थी पर अब वह भी बिलकुल बुझना चाहती है । हे नाथ | जिनको आपने मालिककी भाति हमारी रक्षाके लिए भेजे थे-जिनको आपने अपने प्रतिनिधिकी जगह स्थापित किए थे-वे भव- केवल अपनी सत्ताधिकारके-लोभी हुए दीख. पडते है। मान उन्हें बहुत सुहाता है। स्वार्थने उन्हें अन्धे बना दिये है। अब हमारी रक्षा करनेवाला कोई नहीं है। इसलिए हे प्रभो! आपके यहां आये बिना कोई मार्ग हमारे सुधारका दिखाई नहीं पडता। अब वह समय नहीं रहा जो आप अपने शिष्योंको भेजकर फिरसे धर्मका मार्ग चलावेउसका रुद्धार- करें। अब तो आपहीको आना पडेगा। क्योंकि वस्तुकी परिस्थिति ही ऐसी होगई है जो आपके आये बिना उसका सुधार होना कठिन है। इस भयानक समयमें सामान्य शिष्योंके द्वारा यह गाढ़े अन्धकारका-पोपलीलाका-अभेद्य आवरण नहीं भेदा ना सकेगा-नहीं हटाया जा सकेगा। हेप्रभो! इतना दुराग्रह बढ़ गया है,