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समीक्षा
WAPAR
यवहार का देशपणा है अथवा ते व्यवहारकरि उपदेशने
योग्य हैं।
टीकायां द्वारकरि कहे हैं । जे पुरुष अन्त के पाक फेरि उतर्या जो शुद्ध सुवरण तिहस्थानीय जो वस्तु का उत्कृष्ट असाधारण भाव तिनिक अनुभव हैं, तिनिके प्रथम द्वितीय आदि अनेक पाक की परंपरा करि पच्यमान जो अशुद्ध सुवर्ण तिम स्थानिय जो अनुत्कृष्ट मध्यम भाव तिसके अनुभव करि शुद्धपणातें शुद्ध द्रव्य का श्रदेशीपणा करि प्रगट किया है अप लित अखंड एक स्वभाव रूप एक भाव जाने ऐसा शुद्ध नय है । सोही उपरि ही उपरि का एक प्रतिवर्शिका स्थानीयपणाव जान्या हुआ प्रयोजनवान है । बहुरि जे केई पुरुष प्रथम द्वितीय यादि अनेक पाक की परंपरा करि पच्यमान करि जो वही सुवर्ण तिसस्थानीय जो वस्तु का अनुत्कृट मध्यम भाव ताकू अनुभव है, तिनिके अन्त के पाक करि ही उतरया जो शुद्ध सुवर्णतिम स्थानीय वस्तु का उत्कृष्ट भाव ताका अनुभव करि शून्य पणातें अशुद्ध द्रव्य का आदेशीपणाकरि दिखाया है न्यारा न्यारा एक भाव स्वरूप अनेक भाव जाने ऐसा व्यवहार नय हैं। सोही विचित्र अनेक जे वर्णमाला तिस स्थानीयपणातें जान्या हुआ तिम काल प्रयोजनवान् है । जाते तीर्थ अर तीर्थ का फल Bf stafter ऐसा ही व्यवस्थित पना है। नीर्थ जा करि faरिए ऐसा तो व्यवहार धर्म र जो पार होना सो व्यवहार धर्म का फल, अपना स्वरूप का पावना सो तीर्थ फल है। इ
उक्त' च गाथा
जो जिणमयं पवज्जड़ ता मा, ववहार बिच्छये मुहय । एक्केण विणा छिज्जर तित्थं, अपणेण उण तच्चं ।
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