Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा raamrrormwwwwron मायगा वहां पर निश्चय नय का आलम्बन होगा और जहां पर भेद रूप सविकल्प वस्तु का विचार किया जायगा वहां पर व्यवहार नय का आलम्बन लेना पड़ेगा अतः श्रेणो चढ़ने के प्रथम सातवें गुणस्थान तक मुख्यतया व्यवहार नय का ही पालम्बन है क्योंकि वहां तक निर्विकल्पध्यान नहीं होता इसलिये वहां तक व्यवहार का हो शरण लेना पडता है । जैसा कि समयसार नाटक में कहा है । देखो जावाधिकार"ज्यों नर कोउ गिर गिरसों तिहि होइ हितू जो गहैं दृढ़वाही स्यों बुधको विवहार भलो जवलों तवलों शिवनापति नाही यद्यपि यो परमाण तथापि सधे परमारथ चेतनमाही। जीव अव्यापक है परसों विवहार मों तो परकी परछाई" ॥ इस कथन से जय तक मोक्ष प्राप्त नहीं होती तब तक विद्वानों को व्यवहार का साधन करना चाहिये यह बात प्रमाण भूत है। जैसे कोई मनुष्य पहाड़ से गिरता हुआ वह यदि अपनी भुजा के द्वारा किमी पदार्थ को पकड़ कर रहें तो वह गिरने से बच सकता है । तेसे ही यह जाव नर्क निगोदादि में पतन करता हुआ यदि यह व्यवहार धर्म का प्राश्रय ले तो वह नर्क निगोदादि के पतन से बच सकता है । इमलिये जब तक मोक्ष (पर के संयोग से सर्वथा मुक्त निश्चय नथ का विषय भूत शुद्ध स्वरूप वाला ) न हो तब तक व्यहार धर्म के आश्रय रहना योग्य है तब ही आत्मा में परमार्थ की सिद्धि हो सकती है अन्यथा नहीं । संसार में कोई प्राणी दुखी रहना नहीं चाहता-सब सुखा रहना चाहते हैं । और सुख का साधन है व्यवहार धर्म। "धर्म करत संसार सुख, धर्म करत निरवाण । धर्म पंथ साधे विना यह नर तियंचसमान॥" For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 376