Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन तत्व मीमांसा की ' v -~ vv. ...... होती है । एक नय की अपेक्षा एक नय रखकर जो कथन किया जाता है उनसे वस्तु स्वरूप का शुद्धाशुद्ध रूप सर्वाश ग्रहण हो जायगा वह प्रमाण स्वरूप है अतः जीवकी शुद्धाशुद्ध रूप अवस्था द्वोनों नथ द्वारा सिद्ध है । संसार अवस्था में जीवकी अशुद्ध अवस्था है और मुक्त जीव की शुद्ध अवस्था है। यह शुद्धाशुद्ध रूप जीव की दोनों ही पर्याय हैं वह यथार्थ है इस यथार्थता का प्रतिपादन सापेक्ष दानों नयों द्वारा होता है। इसलिये दोनों ही नय सापेक्ष सत्यार्थ हैं मापेक्ष नय ही वस्तु स्वरूप के प्रतिपादन करने में समर्थ होता है, निरपेक्ष नय नहीं होती। इस लिये आचार्य कहते हैं कि-वस्तु स्वरूप प्रतिपादन करने में एक नय को मुख्य और दूसरी नय को गौण रखकर वस्तु स्वरूप का प्रतिपादन करोगे तो वस्तु स्वरूप का प्रतिपादन हो सकेगा__ "अस्तिानर्पितसिद्धः" ___ तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ५ अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनः प्रयोजनवशाद् यस्य कस्यचिद्धर्मस्य विवक्षया प्रापितं प्राधान्यातमुनीतमिति यावत् । तद्विपरीतमनर्षितम् प्रयोजनाभावात् सतोऽथ विवक्षा भवतीत्युपसत्र मीभूतम गतिमित्युच्यते । तथा द्रव्यमपि सामान्याणिया नित्यं विशेष प्रणयाऽनित्यमिति नास्ति विरोवः । तौ च सामन्यविशेषी कथंचित भेदाभेदाभ्यां व्यवहारहेतू भवतः ॥ सर्वार्थासद्धिः । ___ अर्थात् सर्व वस्तु अनन्त धर्मात्मक भेदाभेद रूप है इसलिये उसके प्रतिपादन करने में दोनों नयों का मामय प्रयोजनीभूत है। असः जहां पर अभेदरूप वस्तु का निर्विकास विचार किया For Private And Personal Use Only

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