Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २ जैन तत्त्व मीमांसा की (१) विषय प्रवेश ( २ ) वस्तुस्वभाव मीमांसा (३) निमिन्त क स्वीकृति (४) उपादान निमित्त मीमांसा ( ५ ) कर्तृकर्ममीमांसा (६) षटकारकमीमांसा ( ७ ) क्रम नियमित पर्याय मीमांसा ( 5 ) सम्यक नियति स्वरूप मीमांसा ( ( ) निश्चय व्यवहार मीमांसा (१०) अनेकान्त स्यादवाद मीमांसा ( ११ ) केवल ज्ञान स्वभाव मीमांसा (१२) उपादान निमित्त सम्बाद | इन बारह अधिकारों में सर्वत्र कानजी स्वामी के निश्चय एकान्तका समर्थन किया गया है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परन्तु वस्तु स्वरूपका ज्ञान केवल निश्चय नयसे ही नहीं होता । व्यवहार नय का भी शरण लेना पड़ता है। इसका कारण यह है कि व्यवहार नय वस्तु के विचार करने में विवादग्रस्त विषयों को सुलझाने में वस्तु स्वरूप में संदेह होने पर उनका समाधान करने में समर्थ है । व्यवहार नय सापेक्ष निश्चय नय का आलम्बन हितकर है। इस बात की पुष्टि पंचाध्यायी ग्रन्थ से हो जाती है । "नैवं यतो वलादिह विप्रतिपत्तौ च संशयापत्तौ । वस्तुविचारे यदि वा प्रमाण मुभयालम्बितज्ञानम् ।।" अर्थात् बिना व्यवहार नयका अवलम्बन किये केवल निश्चय जयसे ज्ञानमें प्रमाणता ही नहीं आ सकती है क्यों कि पदार्थों नेक धर्मात्मक है और एक नय एक ही धर्म का वर्णन कर सकती है। नय प्रमाण का अंश है। वह दो भागों में बटा हुआ है । एक द्रव्यार्थिक नय जिसको निश्चय नय कहते हैं। दूसरा पर्यायार्थिक नय, जिसको व्यवहार नय कहते हैं । द्रव्यार्थिक नयका विषय द्रव्याश्रित है और पर्यायार्थिक नयका विषय द्रव्यकी पर्याय है. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 376