________________ लिये परम पुण्योदय का प्रतीक है। पूज्य आचार्यश्री के चरणों में मेरी वंदनाएँ सादर समर्पित है। पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के चरणों में मैं सादर विनयावनत हूँ। उनके कृपापूर्ण वरदहस्त और वात्सल्य-सिक्त सानिध्य में अनेक कार्य सहज ही सम्पन्न हो जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन उनकी कृपादृष्टि के बिना संभव नहीं था। उनके चरणों की छाँव तले बाह्य और आन्तरिक विकास के सोपान चढ़ते रहना ही काम्य है। परम आदरणीया भगिनी साध्वी डॉ. नीलांजनाश्रीजी म. का प्रस्तुत कार्य में महत्त्वपूर्ण अवदान रहा है। उनके पुरूषार्थ के बिना इस कार्य पर पूर्णता का कलश कैसे चढ़ता। उन्होंने अपनी उर्वर प्रज्ञा और तीक्ष्ण मेधा से इसे देखा, परखा, जांचा और आवश्यक संशोधन किये। उनका आत्मीयभाव अभिव्यक्ति का नहीं अपितु स्वानुभूति का विषय है। परम आत्मीय मुमुक्षु गौतमजी बोथरा (बाड़मेर) का प्रूफ रीडिंग में महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा है। उनके समुज्ज्वल भविष्य की अपेक्षा रखता हूँ। 1 जिनके अनुरोध पर प्रस्तुत पुस्तक के लेखन का श्रीगणेश हुआ, उन ब्यावर निवासी श्री यशवंतजी रांका एवं जुगनू कांकरिया का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है। उनके प्रति शुभकामनाएं हैं। 1 प्रस्तुत लेखन में 'मुद्रा विज्ञान' की लगभग सामग्री मुद्रा विज्ञान पुस्तक से ली है एवं जिन आगमों, ग्रन्थों एवं पुस्तकों ने मेरे लेखन कार्य की राह आसान की, उस पाथेय-सामग्री के प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञ हूँ। प्रस्तुत प्रकाशन से प्रेरणा लेकर हम जीवन के इर्दगिर्द बिखरी हुई श्रेष्ठताओं का चयन करके अपनी जीवन कला को निखारे एवं स्वर्णिम, सुन्दर एवं समुज्ज्वल भविष्य के रचयिता बने / जैन-जीवन-शैली का यही आह्वान है। प्रमादवश जिनवाणी विरूद्ध कुछ भी लिखा हो तो सादर क्षमाप्रार्थी हूँ। मणि चरण रज Horgenfina मुनि मनितप्रभसागर