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जैनहितैषी
भाग १३
भगवानके बेटे भरत महाराजने ९६ हजार भरतमहाराजने चौथा वर्ण ब्राह्मणका बनाया। स्त्रियोंसे विवाह किया, जिनमें म्लेच्छ आदि राजा. आदिपुराण और पद्मपुराणके पढ़नेसे मालूम
ओंके द्वारा दी हुई, ३२ हजार रानियाँ अप्सराओंके होता है कि क्षत्री, वैश्य और शूद्र इन तीनों ही समान सुंदर और राजाकी प्यारी थीं । इन ९६ वणोंसे ब्राह्मण बनाये गये; न कि किसी विशेष हजार रानियोंके साथ भरत महाराज कामदेवके वर्णमेंसे। क्योंकि जब भरतको अणुव्रती श्रावकोंको समान सब प्रकारके सुख भोगते थे । यथाः- दान देनेका विचार हुआ और उन्होंने इनकी म्लेच्छराजादिभिर्दत्तास्तावत्यो नृपवल्लभाः। परीक्षाके वास्ते लोगोंको बुलाया, तब यह नहीं अप्सरः संकथाक्षोणी यकाभिरवतारिताः ॥ ३५॥ लिखा कि अमुक वर्ण या जातिवालोंको बुलाया। प्रकाममधुरानित्थं कामान् कामातिरकेणः ।
इससे विदित है कि सब ही वर्णवालोंको बुलाया स ताभिनिर्विशन् रेमे वपुष्मानिव मन्मथः ॥ ५॥ और होना भी चाहिए था ऐसा ही । क्योंकि ताश्च तच्चित्तहारिण्यस्तरुण्यः प्रणयोद्धराः।
अणुव्रती श्रावक तो सब ही हो सकते हैं, बल्कि बभुवः प्राप्तसाम्राज्या इव रत्युत्सवे श्रियः ॥ ५८ ॥
आदिपुराणमें तो शूद्रोंके बुलानेका खास वर्णन --आदिपुराण, पर्व ३७।
हा
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है। उसमें लिखा है किजब भरतजीने यह विचार
किया कि अणुव्रती गृहस्थोंको दान देना चाहिए, इस प्रकार ३२ हजार म्लेच्छ कन्याओंसे तब उन्होंने समस्त राजाओंको बुलाया और भी विवाह करने पर न वर्णसंकरता हुई और कहला भेजा कि तुम और तुम्हारे सदाचारी न अन्य ही कोई बिगाड़ पैदा हुआ । भरत इष्टमित्र और नौकर चाकर सब अलग अलग महाराजने ऐसा करने पर भी दीक्षा ली और आवें । यथाःवे उस ही भवसे मोक्ष गये। इससे स्पष्ट सिद्ध है।
अणुव्रतधरा धौरा धोरेया गृहमेधिनां । कि धर्मके वास्ते मनुष्य मात्र समान हैं, इनमें
तर्पणीया हि तेऽस्माभिरीप्सितैर्वसुवाहनैः ॥८॥ कोई किसी प्रकारका भेद नहीं है । भरत महा
इति निश्चित्य राजेंद्रःसत्कर्तुमुचितानिमान् । राजने जो ३२ हजार म्लेच्छकन्याओंसे विवाह
परीचिक्षिषुराह्वस्त तदा सर्वान्महीभुजः ॥ ९ ॥ किया था, उनकी बाबत यह कहीं नहीं लिखा कि वे सबकी सब बन्धायें थीं। इस कारण ३२
सदाचानिजौरिष्टैरनुजीविभिरन्विताः । हजार म्लेच्छ रानियोंसे सन्तान भी जरूर हई अद्यास्मदुत्सव यूयमायातति पृथक् पृथक् ॥१०॥ होगी और यदि भरत महाराजके न हुई हो तो ।
-आदिपुराण पत्र अन्य चक्रवर्तियों या अर्धचक्रवर्तियोंके अवश्य उक्त श्लोकोंका यह वाक्य कि सदाचारी हुई होगी । यदि इन म्लेच्छकन्याओंकी संतान नौकर चाकर भी अलग अलग आवें, इस बातको क्षत्री न मानी जाती तो साफ तौर पर ऐसा स्पष्ट बताता है कि शूद भी बुलाये गये थे और नियम शास्त्रमें जाहिर किया जाता, परन्तु किसी उनमेंसे भी ब्राह्मण बनाये गये थे । इस प्रकार भी ग्रन्थमें ऐसा वर्णन नहीं है। इससे सिद्ध है वलाये हुए लोगों से भरत महाराजन जिनको कि उन म्लेच्छकन्याओंकी सन्तान क्षत्री ही हुई, अणुव्रती समझा उनमें जो परली प्रतिमाके योग्य जिसने और जिसकी आगामी सन्तानने अवश्य थे, उनको एक, और जो दूसरी प्रतिमाके योग्य दीक्षा भी ली होगी और उनमें अनेक मोक्ष थे उनको दो. इरूकार स्यारह जनेऊ तक भी नये होंगे।
दिये। रथा:--
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