Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ अङ्क ५-६] चन्द्रगुप्तके स्वप्नोंकी जाँच। २३५ छोड़कर हिंसामार्ग प्रवृत्त होंगे; १५ निर्थ मुनि है कि 'लक्ष्मी नीचोंके लिए सुलभ और उत्तआपसमें विवाद और एक दूसरेकी निन्दा मोंके लिए दुष्प्राप्य होगी।' परन्तु राजावली करनेवाले होंगे।' कथेमें यह बतलाया है कि 'राजालोग, छठे दोनों ग्रंथोंमें इन छह स्वोंके भेदको भागसे संतुष्ट न होकर, भूमिकरका प्रचार करेंगे छोडकर शेष स्वमोंमें जो प्रायः मिलते जुलते हैं। और द्विगुण तथा त्रिगुण कर माँगकर अपनी अनेक स्वप्न ऐसे भी पाये जाते हैं, जिनके फलोंमें प्रजाओंको सताएँगे।' परस्पर भेद है । यथाः रामचंद्र मुमुक्षुके बनाए हुए 'पुण्यासव' १-भद्रबाहुचरित्रमें ९ वें स्वप्न (मध्यमें नामके कथाकोशमें भी चंद्रगुप्तके १६ स्वमोंका सूखा और प्रान्तमें थोड़ा जल लिये हुए सरोवर) उल्लेख पाया जाता है। परन्तु भद्रबाहुचरित्रमें का फल यह बतलाया है कि । जहाँ जिनेंद्र जिनका उल्लेख है, उन स्वप्नोंमेंसे इस ग्रंथमें १ भगवानके जन्मादिक कल्याणक हुए हैं, ऐसे तीर्थ- नृत्य करता हुआ भूतोंका समूह (नं. ७), २ क्षेत्रोंमें जिनधर्मका नाश हो जायगा और वह ऊँटपर चढ़ा हुआ राजपुत्र ( नं० १४) और कहीं दक्षिणादि प्रान्त देशोंमें स्थित रहेगा;' परन्तु धूलिसे आच्छादित रत्नराशि (नं० १५) इन राजावली कथमें इस स्वमका नाम केवल 'सखा तीन स्वप्नोंका अभाव है । इनके स्थानमें यहाँ. सरोवर' देकर फलोल्लेखमें लिखा है कि 'आर्य- १ धूम्र, २ सिंहासन पर बैठा हुआ बन्दर और खंड जैनमतसे रहित हो जायगा और असत्य- ३ तरुण बैलों पर चढे हुए क्षत्रिय, ये तीन स्वम, की वृद्धि होगी।' अधिक हैं। जिनमें से पहले दो राजावली कथेके . २--राजावली कथेमें, दूसरे स्वप्न ( कल्प- स्वप्नोंसे मिलते हैं और तीसरा भद्रबाहुचरित्रके स्वम-* वृक्षकी शाखा टूटना ) का उल्लेख करते हुए, का रूपान्तर जान पड़ता है । उक्त कथाकोशमें देवचंदजी लिखते हैं कि 'जैनधर्मका पतन होगा इन तीनों स्वप्नोंका फल क्रमशः १ धूर्तीका और चंद्रगुप्तके सिंहासनके उत्तराधिकारी दीक्षा- आधिक्य, २ अंकुलीनोंका राज्य और ३ क्षत्रिधारण नहीं करेंगे' । परन्तु भद्रबाहुचरित्रमें इसी योंका कुधर्ममें रत होना बतलाया है । स्वमका फल यह बतलाया है कि 'अब आगेको रहा भद्रबाहुचरित्रके उक्त तीनों स्वमों ( नं० कोई भी राजा जिनभाषित संयमको ग्रहण ७-१४-१५) का फल, वह ऊपर प्रकाशित नहीं करेगा।' किया जा चुका है। दोनोंके मीलानसे इन स्वमों३-सुवर्णके पात्रमें कुत्तेका खीर खाना, इस का फलभेद भी भले प्रकार समझमें आ जाता १० चे स्वप्नका फल भद्रबाहुचरित्रमें यह लिखा है। परन्तु इतना ही नहीं, जिन स्वप्नोंके नाम - परस्पर मिलते जुलते हैं, उनमें भी अनेक स्वप्न .१ रजसाच्छादितसद्रत्नराशेरीक्षणतो भशम् ऐसे हैं, जिनके फलोंमें भेद पाया जाता है । जैसे करिष्यन्ति नपाःस्तेयां निर्ग्रथमुनयो मिथः ॥ २ सरसा पयसा रिक्तनातितुच्छजलेन च । जिनजिन्मादि. १ कलधौतमये पात्रे भषकक्षीरभक्षणात् । कल्याणक्षेत्रे तीर्थत्वमाश्रिते ॥ नाशमेष्यति सद्धर्मो मार- प्राप्स्यन्ति प्राकृताः पद्मामुत्तमाना दुरासदा ॥ वीरमदच्छिदः । स्थास्यतीह कचित्प्रान्ते विषये २ धूमो दुर्जनाधिक्यं भणति । दक्षिणादिके॥ ३सिंहासनस्थो मर्कटोऽकुलीनस्य राज्यं प्रकाशयति। ३ सुरद्रुमलताभंगदर्शनाद्भप भूपतिः । ४ तरुणवृषभारूढाः क्षत्रियाः नातोप्रे संयम कोपि प्रहीष्यति जिनोदितम् ।। क्षत्रियाणांकुधर्मरति प्रख्यापयन्ति । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140