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जैनहितषी
[भाग १३
उसने अपना विचित्र मत बनाया था, उसीमें रद्दोबदल होता रहा और फिर वही सांख्य और योगके रूपमें एक बार व्यक्त हो गया । अर्थात् इनके सिद्धान्तोंके बीज मरीचिके मतमें मौजूद थे । सांख्य और योग दर्शनोंके प्रणेता लगभग ढाई हजार वर्ष पहले हुए हैं, पर ऋषभदेवको हुए जैनशास्त्रोक अनुसार करोड़ों ही नहीं किन्तु अर्बो खोंसे भी अधिक वर्ष बीत गये हैं । उनके समयमें सांख्य आदिका मानना इतिहासकी दृष्टि से नहीं बन सकता । श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थों में भी मरीचिको सांख्य और योगका प्ररूपक माना है। ७ पाँचवी गाथामें जो पाँच मिथ्यात्व बतलाये हैं, वे ही गोम्मटसारके जीवकाण्डमें भी दिये हैं:--
एयंतं विवरीयं विणयं संसयिदमण्णाणं । वहाँपर इन पाँचोंके उदाहरण भी दिये हैं:--
एयंत बुद्धदरसी विवरीओ बंभ ताबसो विणओ।
इंदो वि य संसइओ मक्काडेओ चेव अण्णाणी ॥ इसमें बौद्धको एकान्तवादी,ब्रह्म या ब्राह्मणोंको विपरीतमति, तापसोंको वैनयिक, इन्द्रको सांशयिक, और मंखलि या मस्करीको अज्ञानी बतलाया है । टीकाकार लोग इन्द्रका अर्थ इन्द्र नामक श्वेताम्बराचार्य करते हैं, पर इसके ठीक होनेमें सन्देह है । आश्चर्य नहीं, जो गोम्मटसारके कर्ताका इस इन्द्रसे और ही किसी आचार्यका अभिप्राय हो जो किसी संशयरूप मतका प्रवर्तक हो । क्यों कि एक तो श्वेताम्बर सम्प्रदायमें इस नामका कोई आचार्य प्रसिद्ध नहीं है और दूसरे इस दर्शनसारमें भद्रबाहुके शिष्य शान्ताचार्यका शिष्य जिन चन्द्र नामका साधु श्वेताम्बरसम्प्रदायका प्रवर्तक बतलाया गया है।
८ छठी और सातवीं गाथासे मालूम होता है कि बुद्धकीर्ति मुनिने बौद्धधर्मकी स्थापना की। बुद्धकीर्ति शायद बुद्धदेवका ही नामान्तर है । इसने दीक्षासे भ्रष्ट होकर अपना नया मत चलाया, इसका अभिप्राय यह है कि यह पहले जैनसाधु था। बुद्धकीर्ति नाम जैनसाधुओं जैसा ही है। बुद्धकीर्तिको पिहितास्रव नामक साधुका शिष्य बतलाया है । स्वामी आत्मारामजीने लिखा है कि पिहितास्रव पार्श्वनाथकी शिष्यपरम्परामें था । श्वेताम्बर ग्रन्थोंसे पता लगता है कि महावीर भगवानके समयमें पार्श्वनाथकी शिष्यपरम्परा मौजूद थी। बौद्धधर्मकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें माथुरसंघके सुप्रसिद्ध आचार्य अमितगति लिखते हैं कि:--
रुष्टः श्रीवीरनाथस्य तपस्वी मौडिलायनः । शिष्यः श्रीपार्श्वनाथस्य विदधे बुद्धदर्शनम् ॥६॥
शुद्धोदनसुतं बुद्धं परमात्मानमब्रवीत् । अर्थात् पार्श्वनाथकी शिष्यपरम्परामें मौडिलायन नामका तपस्वी था । उसने महावीर भगवानसे रुष्ट होकर बुद्धदर्शनको चलाया और शुद्धोदनके पुत्र बुद्धको परमात्मा कहा । दर्शनसार और धर्मपरीक्षाकी बतलाई हुई बातोंमें विरोध मालूम होता है । पर एक तरहसे दोनोंकी संगति बैठ जाती है। महावग्ग आदि बौद्ध ग्रन्थोंसे मालूम होता है कि मौडिलायन और सारीपुत्त दोनों बुद्धदेवके प्रधान शिष्य थे । ये जब बुद्धदेवके शिष्य होनेको जा रहे थे, तब इनके साथी संजय परिव्राजकने इन्हें रोका था। इससे मालूम होता है कि ये पहले जैन रहे होंगे और मौडिलायनका गुरु
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