Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 88
________________ जैनहितेषी [भाग १३ __ अब हम कहते हैं कि श्रद्धा नहीं उठी। दादा भाई नौरोजी । तुम धड़ाधड़ समाजसुधारका काम करो। पाण्डित, त्यागी, प्रतिष्ठाप्राप्त लोग अभी तुम्हारा साथ नहीं देंगे। इनकी चाल ही सुस्त है । ये चलेंगे ( लेखक-पं० ज्वालादत्त शर्मा । ) जरूर, परन्तु तुम्हारे पीछे पछेि। इनके भरोसे न , रहो। ये सदासे ठण्डे लोहेमें हथौड़ा मारते रहे भारतके आदि उपकारक, राजनीतिक प्रथम , हैं और इसी कारण असफल होते रहे हैं। तुम ऋषिकल्प दादाभाई अब इस संसारमं नहीं है । गत 'प्रचारक, वर्तमान आन्दोलनके दीक्षागुन गर्म लोहे पर चोट मारो और अपने कामकी चीज बना डालो । मिनिट मिनिटकी देरी मुसाफिरको । ". जूनके अन्तिम दिनकी शामको इस महापुरुषने रेल न मिलने देगी । तुम पहले ही बहुत पीछे "" इह-लोक-त्याग किया । मृत्युके समय दादाउठे हो । अब भागकर चलनेसे काम चलेगा। M भाईकी अवस्था ९२ वर्ष ९ मास और २६ दिन आज एक सुधार तो कल दसरा। इसमें तम्हारा था । इस समय अप्राप्य इस लंबी आयमें आपनं लाभ तो है ही, पर साथ ही इन पण्डितोंको भी देश-हितसे सम्बन्ध रखनेवाले अनेक काम किये ! लाभ होगा। जैसे इस समय ये बगलमें छपी हुई जिस बीजको आपने अपने अदम्य उत्साह पोथियाँ दबाने लगे हैं और उन्हींको प्रमाणमें और अनथक परिश्रमसे भारतके विस्तृत क्षेत्र पेश करने लगे हैं, उसी प्रकार एक दिन होगा सबसे पहले बोया था, उसे अपनी आँखों से उगा, कि ये ही पण्डित लोग होंगे और इनका उपदेश बढ़ा, फूला और किसी किसी अंशमं फला हो रहा होगा कि अपनी जातिमें विवाह करना देखकर भारतके पितामह नाराजीन शान्तचित्तसे महापाप है जैसे कि आजकल एक गोतमें करना। इहलोक-लीला समाप्त की। जो सदा पीछे चलते रहे हैं, यदि उन्हें आगे करक बाल्यकालमें ही पिताका देहान्त हो जानसे चलनेके भरोसे रहे, तो कभी एक पग भी आगेन बालक नौरोजीकी शिक्षाका दायित्व उनकी बढ़ा सकोगे। ये अपनी प्रतिष्ठाके लिए सारे ग्रन्थों पर स्वनामधन्या माताके ऊपर आ पड़ा था ! स्नहपानी फेर देंगे, रूढियोंको ही ग्रन्थ मानते रहेंगे, ", मयी पर बुद्धमती माताने पुत्र नौरोजीको शिक्षा की कभी तुमको सच्चे साफ रास्ते पर नहीं चलने देंगे। इस दिलानेमें-और उस समय जब कि लम्बईमें तुम इनके साथकी परवा मत करो। न तुमको नरक जाना पड़ेगा और न निगोदमें। क्योंकि शिक्षाप्राप्तिका मार्ग कण्टकाकीर्ण था-सती तुम्हारा आशय दूसरोंको पापसे बचाना है और माताकी तरह — यत्परो नास्ति' प्रयत्न किया । उनकी बेलगाम वासनाओंको एक सीमाके भीतर संसारके प्रायः सभी महापुरुषोंकी तरह नौरोजीके नियंत्रित करना । छुपकर एकबार हुक्का पीने- हृदयमें भी देशोपकार और जातिसुधारका अंकुर वालेको खुल्लमखुल्ला पाँच बार पीने दो। हुक्का माताके सुकोमल उपदेशोंसे ही जमा । वितेकापीना छुडानेका यही उपाय है । छुपकर पाप नन्दकी तरह नौरोजी भी अपनी उन्नतिका कारण करना एक पाप नहीं रहता, वह १०० गुना अपनी माताको ही समझते थे। पिताको मृत्यु न हो जाता है । बीजके दबनेसे या छुपनेसे ही । उसमें अंकर फूटते हैं, खले पडे रहनेसे नहीं। १ होने पर बहुत सम्भव था !क नौरोजी भारतके अभी पापका पेड़ छोटा है। उसको उखाड़कर पितामह बननेकी बजाय केवल पारसियोंके बड़े फेंक दो, नहीं तो फिर कछ न होगा। काम पुरोहित बन जाते; किन्तु प्रकृतिने भारतकी किये जाओ और कहनेवालोंको कहे जाने दो उन्नति के सूत्रपात के लिए आपको जन्म दियः कि, श्रद्धा उठ गई-श्रद्धा उठ गई। था-उसका अबाध विधान दूसरा ही था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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