Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 89
________________ अङ्क ५-६] दादा भाई नौरोजी। २८१ जो किसी देशके उन्नति-विधानके लिए जन्म प्राप्त करके उन्होंने विद्यादानद्वारा उस ऋणको लेते हैं वे प्रायः गरीबी, दुःख और निरा- ही पहले चुकाया था । शिक्षा प्राप्त करके सन् शाके झुण्डमें ही पैदा होते हैं । इन तापोंमें १८५० ई० में २५ वर्षकी अवस्थामें आप ऐलतपकर ही कोई मनुष्य देशोपकार जैसी कठिन फिंस्टन कालेजमें पहले असिस्टेण्ट और फिर तपश्चर्या करनेका अधिकारी होता है । महा- प्रोफेसर नियुक्त हुए थे । वहाँ आपने गणित मना नौरोजीको भी इन परीक्षाओंमें किन्तु और प्राकृतिक विज्ञान जैसे गम्भीर विषयोंकी सफलतापूर्वक निकलना पड़ा था । स्वयं गरीबीमें कई वर्षोंतक शिक्षा दी । अर्थशास्त्रके भी आप विद्याभ्यास करके उन्होंने शिक्षाप्राप्तिके समय प्रकाण्ड पण्डित थे । आपके लिखे हुए प्रायः गरबिॉके मार्गमें जो अनेक अन्तराय उपस्थित सभी ग्रन्थोंसे इस बातका पता चलता है। होते हैं उनका अच्छी तरह अनुभव कर लिया बम्बईके सुप्रसिद्ध वयोवृद्ध विद्वान सर रामकृष्ण था। देशवासियोंकी दयनीय दशाको देखकर भाण्डारकर आपके शिष्योंमेंसे ईशकृपासे आज उन्होंने उसी समय देशसेवाका पवित्र सङ्कल्प भी अवशिष्ट हैं । चन्दावरकर, मुधोलकर और किया था। उनकी देशसेवा शौक या 'दिस- गोखले भाण्डारकरके शिष्य होनेकी हैसियतसे म्बरके अन्तिम सप्ताह ' की चीज न थी, वह आपके प्रशिष्य हैं । शिक्षा विषयको छोड़कर उनके मनकी चीज़ थी, आत्माकी चीज़ थी, राजनीतिमें तो भारतके सभी नेता आपको अपना और इसीलिए जीवनकी चीज़ थी। गुरु ही नहीं, परात्पर गुरु समझते थे और ___ उनका कार्यक्षेत्र भारतसे अधिक इंग्लैंडमें समझते हैं । आपहीके उद्भावित सूत्रों पर आज रहा, भारतकी भलाईके लिए प्रयत्न करनेमें कल राजनीतिकी चर्चा की जा रही है। आप उन्होंने घर और बाहर जैसा अनथक और अनेक पहले भारतीय थे, जिन्होंने भारतकी भलाईके युगव्यापी परिश्रम किया, वैसा अनेक कारणोंसे लिए अनेक विषयोंको आन्दोलनके लिए चुना और विशेषतः स्वास्थ्याभावके कारण और किसी था। इसके लिए आपको जितना अध्ययन, मनन नेतास अबतक न बन पड़ा। और अनुशीलन करना पड़ा था, वह आपहीके ___ नौरोजी आदर्श नेता थे। वे सदाचारकी तो लिए सम्भव था । क्योंकि प्रकृतिने सूक्ष्म बुद्धि मानो मूर्ति ही थे। लंदनमें व्यवसाय करते समय और प्रखर प्रतिभाके साथ ही आपको काम करजब उन्हें कई लाखका घाटा हुआ था, उस समय नेके लिए स्वास्थ्य और समय भी अच्छे परिवे जरा भी विचलित नहीं हुए थे । आपकी माणमें प्रदान किया था। ईमानदारी और सज्जनता पर विश्वास करके यों तो आपने अनेक संस्थायें स्थापित की; इंग्लैंडके सबसे बड़े बैंकने आपका सब ‘देना' किन्तु भारतकी जातीय महासभा-जिसका चुका दिया था । नौरोजी महाशयने कई वर्ष विदेशी नाम 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' देशके पढ़े घोर परिश्रम करके बैंकका कुल रुपया सूद सहित लिखे हर एक युवकके जिह्वान पर है-आप और देकर प्रत्यागमन किया था। इस घटनासे इंग्लैं- आपके कुछ सहयोगियोंके ही परिश्रमका फल है । डके व्यवसायि-मण्डलमें उनकी बड़ी साख हो इस महती सभाके सभापतिके पद पर-जिसकी गई थी। प्राप्ति नेता बननेका पूरा सर्टीफिकेट है-आप पितामह नौरोजी पहले प्रोफेसर नौरोजीके एक दो बार नहीं, तीन बार देशवासियोंकी नामसे प्रसिद्ध थे । देशके धनसे पहले शिक्षा प्रबल इच्छासे प्रतिष्ठित हुए । लाहोरकी कांग्रे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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