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अङ्क ७]
विविध प्रसङ्ग।
ऐसी दशामें यदि सेठजीने यह कह दिया कि- धमें लेख लिखे जावें। हम समझते थे कि इस “दश पाँच रुपये जो कोई इन्हें दे देता है, ये प्रस्तावसे कमसे कम यह लाभ अवश्य होगा कि उसीके पक्षमें लिख देते हैं " तो हमारी समझमें विधवाविवाहके विरुद्धमें कुछ नई युक्तियाँ पढ़सर्वथा असत्य तो नहीं हुआ। हमको मालूम है नेको मिलेंगी; परन्तु देखते हैं कि लोग लेख कि स्वयं सेठजीके चित्र कई पत्रों में इसी तरह तो लिखते हैं, पर युक्तियोंके खोजनेकी झंझप्रकाशित हुए हैं और उनका खर्च सेठजीकी टमें नहीं पड़ना चाहते । वे युक्तियोंका स्थान दूकानसे दिया गया है।
गालियोंसे भर देनेमें ही अपनेको सिद्धहस्त पर सेठजी साहब, सभी पत्र ऐसे नहीं हैं। सिद्ध कर रहे हैं । सुगमता भी इसीमें है। आप यदि सभी ऐसे होते तो वेश्यानृत्य करानेके उप- अबतकके निकले हुए उक्त सब लेखोंको पढ लक्ष्यमें आप पर बेशुमार धिक्कार और तिर- जाइए, उनमें आपको युक्तियोंके स्थानमें क्या स्कारोंकी वृष्टि न होती और न आपको इस मिलेगा--हाय हाय ! बड़ा गजब हो रहा है। सभामें उसके त्यागकी प्रतिज्ञा करनी पड़ती। जो देश ऐसा पवित्र था, जहाँकी स्त्रियाँ ऐसी ऐसे भी कई पत्र मौजूद हैं, जिन पर न किसी सती थीं, जहाँकी स्त्रियाँ पतियों के साथ जलकर धनी मानीकी कृपा है और न जिनकी आर्थिक मर जाती थीं, उसी देशमें अब विधवाविवाहअवस्था अच्छी है। फिर भी वे धनियोंके अन्यायों की चर्चा करनेवाले कुपत पैदा हो गये हैं ! हे और अत्याचारों को नि:शंक होकर प्रगट कर- पथ्वी. त घस क्यों नहीं जाती ! इन पापियोंकी नेके लिए सदा सन्नद्ध रहते हैं और आपके दश जीभ निकलकर बाहर क्यों नहीं गिर पड़ती ! न पाँच नहीं, दश पाँच लाख-रुपयोंको भी उसी हुआ कोई जैनराजा, नहीं तो इनको मालुम हो दृष्टिसे देखते हैं, जिस दृष्टिसे आप पत्रसम्पा- जाता । जो इस विषयकी चर्चा करते हैं, वे दकोंको देखते हैं।
व्यभिचारी हैं, अपनी विषयवासनायें इससे __हम नहीं चाहते कि आप अपने शब्दोंको चरितार्थ करना चाहते हैं और स्वार्थान्ध हैं । वापस लौटावें । नहीं, आप पत्रसम्पादकोंका कुछ बातें युक्तियाँ कहकर पेश की जाती हैं, इससे भी अधिक अपमान करें, जिसकी लज्जासे पर उनमें सार कछ नहीं होता जैसे-'विधवाये अपने आत्मगौरवकी रक्षा करनेमें और अपना विवाह ' यह शब्द ही नहीं बन सकता। कर्तव्य समझने में कुछ तो सावधान हो जायँ। क्योंकि विवाह कन्याका होता है और विधवा
४ विरोधी लेखों पर विचार । कन्या नहीं। मानों शब्दशास्त्रमें कोई ऐसी बड़ी ___ इधर कई महीनोंसे कुछ जैनपत्रोंमें-विशेष शक्ति है जो विधवाको किसीकी पत्नीही न करके जैनगजटमें ऐसे लेखोंकी बाढ़ आ रही है, बनने देगी। अरे भाई, 'विधवाविवाह ' मत जिनमें हम पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे आक्रमण कहो, इसे 'धरेजा' आदि और ही कुछ कहलो किये जा रहे हैं और हम पानी पी-पीकर कोसे जिसमें आपके व्याकरणके नियमका भंग जा रहे हैं । चाहे जिस लेखको आप उठा न हो जाय । स्त्रियोंको अधिकार नहीं लीजिए, उसका प्रधान भाग यही 'गालिप्रदान' है, आदि बातें भी ऐसी ही कही जाती है । होगा । गाली भी कैसी, जिनका सहन करना हितैषीमें कुछ लेख, ग्रन्थोंकी परीक्षा सबका काम नहीं । दाहोदकी सभामें यह आदिके सम्बन्धमें निकले हैं और कुछमें यह प्रस्ताव पास हुआ था कि विधवाविवाह के विरो- लिखा गया है कि अमुक ग्रन्थके 'कर्ता दिगजर
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