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जैनहितैषी
[भाग १३
पैरोंके नीचे प्रत्यक्ष वस्त्राकार खुदा हुआ रहता है को श्वेताम्बरसंप्रदायकी बतलाते हैं-दिगम्बर और दिगम्बर मूर्तियोंमें दिगम्बरत्व । इस लिए संप्रदायकी नहीं ! इसी पुस्तकके पृष्ठ ४१ पर इस भिन्नता और निलांछनताका कारण जो एक और विलक्षण मूर्त्तिचित्र है, जो आजतक उपाध्यायजी लिखते हैं, वास्तवमें वही है या और मिली हुई सभी मूर्तियोंसे विचित्र है । यह पद्माकोई, इसकी निष्पक्षभावसे मीमांसा कर ऐति- सनस्थ या बैठी हुई प्रतिमा है । आसपास दो हासिक तत्त्वज्ञोंको, वस्तुस्थितिके स्वरूपको मनुष्य हाथ जोडे खड़े हैं । प्रतिमाके नीचे भी उद्घाटित करना चाहिए।
तीन स्त्रियाँ और शायद दो पुरुष इसी तरह हाथ जिन सज्जनोंको इस विषयमें विशेष खोज जोड़कर खड़े हैं । मध्यकी जो पद्मासनस्थ मर्ति करनेकी या जाननेकी जिज्ञासा हो उनके लिए, है वह अन्यान्य जैनमूर्तियोंके ही समान है; प्राचीन और विश्वस्त साधनों से, मथुराके कंकाली परंतु विलक्षणता उसमें यह है कि उसके सर्वांग पीलेमेंसे, गवर्नमेण्टके ऑर्किओलॉजिकल सर्वे पर वस्त्र पहराये गये हैं। वस्त्र साफ साफ़ उत्कीर्ण डिपार्टमेण्टकी तरफसे खुदाई करनेपर जो जैन- किये गये हैं; मस्तक पर भी कुछ मुकुट जैसी मूर्तियाँ निकलीं हैं और जो बहुत करके लख
वस्तु है । डा० फुहरर इसे वर्धमान स्वामीकी नऊके अजायबघरमें रक्खी हुई हैं बहुत कामकी पतु हैं । इस विषयका विचार करनेमें उनसे बहत मूर्ति बतलाते हैं । मि० मुकरजी, इसे जैनअच्छी सहायता मिल सकेगी। उनकी प्राचीनता प्रतिमा न मानकर विष्णु-कृष्णकी प्रतिमा बतअसन्दिग्ध है । उनमेंसे कई पर ब्राह्मी लिपिमें लाते हैं । क्योंकि अभीतक ऐसी कोई भी जैनलेख भी खुदे हुए हैं । The jain stupa प्रतिमा या बौद्धप्रतिमा नहीं मिली है; परंतु साथ and other Antiquities_of mathura ही यह शंका वहाँ पर भी आ खड़ी होती नामकी एक पुस्तक सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ
" है कि कृष्णकी मूर्ति भी तो ऐसी कहीं नहीं Vincent A. Smith ने प्रकट की है, जिसमें
- मिली ! बल्कि जैनप्रतिमाओंके साथ तो इसका मथुरावाली इन सब प्रतिमाओंके तथा अन्याय :
थोड़ा बहुत सादृश्य है; कृष्णकी प्रतिमाके साथ शिल्पकामवाले पाषाणखण्डोंके चित्र प्रकट किये .
तो किंचित् मात्र भी मेल नहीं खाता । कृष्णकी गये हैं। कुछ लेख और उन पर साइबने अपनी
ना प्रतिमा जैन या बौद्ध प्रतिमाके सदृश एलथी मार। टीका भी साथमें प्रकट की है। एपिग्राफिया इंडि
कर और दोनों हाथ खोलेमें रखकर ध्यानारूढ काके प्रथम दो भागोंमें तथा और भी कुछ ..
हुई कहीं भी नहीं देखी सुनी गई । 'कर्मण्येवाधिपुस्तकोंमें इस विषयकी सामग्री संपादित की
कारः । वाले कर्मयोगीय उद्गारोंके निकालनेवाले हुई है । इन साधनोंद्वारा, इस विषय पर बहुत । कुछ प्रकाश पड़ सकता है। विन्सेण्ट ए. स्मिथ कृष्णकी मूर्ति इस प्रकार उदासीनता कब धारण
साहबवाली रिपोर्ट में बहुतसी जिनप्रतिमाओंके भी कर सकती है ? संसारके सन्तापोंसे संतप्त हो- चित्र दिये हुए हैं, जिनमें कुछ बैठी मूर्तियाँ हैं और कर, उसके संसर्गका सर्वथा ही त्यागकर गिरि
कुछ खड़ी हैं। बैठी हुई मूर्तियों पर वस्त्र या नग्न- गुहाओंमें प्रविष्ट होकर महीनोंतक आँखकी ताका कोई चिह्न नजर नहीं आता; परन्तु खड़ी पलक न मारनेवाले बुद्ध या महावीर जैसे परम सर्तियाँ स्पष्ट नग्नाकृतिवाली हैं । परंतु आश्चर्य निविण परुषोंहीकी ऐसी मार्तयाँ हो सकती हैं। यह है कि इन पर जो लेख खुदे हुए हैं, और उनमें जिन गण, शाखा, कुल और ,
। यह लिखनेका तात्पर्य केवल इतना ही है कि सभागादिके नाम हैं वे श्वेताम्बरोंके सुप्रसिद्ध 'प्राचीन कालमें जिनमूर्तियाँ कैसी थीं?" इस ग्रंथ कल्पसूत्रकी स्थविरावलीमें दिये हुए नामों- शंकाके समाधानार्थ प्रयत्न करनेवाले मनुष्यको में से हैं । इस लिए डा० बुल्हर इन प्रतिमाओं- पहले इसी दिशामें प्रयाण करनेकी जरूरत है।
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