Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 112
________________ ३०४ जैनहितैषी [भाग १३ ३ दिगम्बरजैनशास्त्रीयपरिषत्का काम बड़े ७ इन्दौरके धन कुबेर सेठ हुकुमचन्दजीने प्रकट जोरशोरसे चल रहा है। थोड़े ही समयमें किया है कि यदि मेरी धर्मपत्नी डेड़ वर्षके भीतर यह अनुभव होने लगा है कि शास्त्रीगण नीरोग हो जायेंगी तो मैं एक लाख रुपये भरकी लोगोंके प्रश्नोंका उत्तर समय पर नहीं देते। चाँदीकी तीन प्रतिमायें बनवाकर विराजमान करादे भी नहीं सकते। क्योंकि काम दिनपर दिन ऊँगा।मालूम नहीं, जिनेन्द्रदेवके दरबार में इस बड़ी बढना जाता है। ऐसी दशामें परिषत्को चाहिए भारी रिश्वत पर कुछ खयाल किया जायगा या कि जो प्रश्न उनके पास निर्णयके लिए भेजे नहीं । वहाँ जिस तरहका अधेर और लापरजायँ उनके साथ प्रति प्रश्न पाँच रुपयाके हिसा- वाही सुनी जाती है, यदि वह सच हो तो इस बसे दक्षिणा भेजी जाय और डाँकखर्च जुदा। समयकी 'धर्मप्रभावना' की गाड़ी अधिक यदि काम थोड़ा हो, तो भी दक्षिणा अवश्य दी दिनोंतक न चल सकेगी। इस लिए गोलमालकाजानी चाहिए । इस समय धर्मकार्यमें भी रिणी सभाकी राय है कि इस विषयमें किसी दक्षिणा लेना जायज है। वकील लोग जब धर्मके शासनरक्षक देवकी मार्फत एक 'मेमोरियल' मुकद्दमोंमें फीस लेते हैं, तब पण्डित लोगोंको भेजा जाना चाहिए, जो भगवान्के चित्तको इस दक्षिणा क्यों न दी जाय ? इस दक्षिणाके कार्यमें ओर आकर्षित करे। उसमें लिखा जाय कि जो कुछ खर्च होगा, उसका प्रबन्ध गोलमाल- यह रकम मामूली नहीं है । डेड वर्षकी मोहलत कारिणी सभा करेगी। भी काफी है। सेठजी करोड़पति हैं । उन्होंने ४ तीर्थक्षेत्रकमेटीके महामंत्री लाला प्रभुद- एक करोड़ रुपया युद्धऋणमें दिया है। यदि यालजीका स्तीफा मंजूर हो गया, यह जानकर उनका भी खयाल न किया जायगा तो फिर सभा कमेटीको प्रेरणा करती है कि वह उनको काहेको कोई आपकी सेवा करेगा ? यदि आप उनके कामका एक सर्टिफिकेट देवे और उन पर दस कमेटीका जो लगभग चार हजार रुपया निक- सेठजी भी आपके बड़े काम आयेंगे । आश्चर्य लता है उसे प्रसन्नतापूर्वक माफ कर देवे। नहीं, जो वे अबकी वार आपके लिए एक चाँदीका ५ श्रीयुक्त पं० पन्नालालजी वाकलीवालको उनके नित्य प्रतिके नियम परिवर्तन करने, एक मन्दिर ही बनवा दें। आपकी इन चाँदीकी । प्रतिमाओंकी सच्ची शोभा तो तभी होगी । इत्यादि। ग्रन्थों का मूल्य बराबर बदलते रहने और नये नये प्रात विभाग तथा मण्डलियाँ स्थापित करनेके उपलक्ष्यमें पं० उदयलालजी काशलीवालने एक वर्षसे सभा धन्यवाद देती है । इस प्रकारके कार्य अधिक हुआ, लेखादि लिखना बन्द कर दिया गोलमालकारिणी सभाके उद्देश्यों के पोषक हैं। है। इसके लिए गोलमालकारिणी सभा उन्हें ६ जनहितैषीमें प्रकाशित हुई जैनसिद्धान्तभा- धन्यवाद देती है। आशा है कि अब आगे उनके स्करकी समालोचनासे सेठ पदमराजजी रानीवा- द्वारा 'मेरी दक्षिणकी यात्रा' 'अप्रतिष्ठित प्रतिमायें लेको जो दुःख हुआ है, उसके प्रति सभा समवे. पूज्य है या नहीं' जैसे गोलमालविरोधी लेख दना प्रकट करती है और सम्मति देती है कि वे नहीं लिखे जायेंगें।.. समालोचकको और उसके साथियों को विधवा- येसन प्र ये विवाहका प्रचारक बतलाकर इस बहानेसे उन्हें ख़ब गालियाँ दे लें और इस तरह अपने दिलके । । सभापतिको धन्यवाद देकर सभा विसर्जित हुई। फफोडोंको फोड़ लें। जैनसमाजके पत्र आपके दूसरा अधिवेशन शीघ्र ही होनेवाला है । उसकी गालिदाता लेखोंको जदा जदा नामों से बड़ी प्रति- रिपोर्ट भी शीघ्र भेजी जायगी। छाके साथ छापनेको तैयार हैं। श्रीगड़बडानन्द शास्त्री। प.पगमग एन. पाटाp८५मजार पर 21 UTTTTTTTTTTTTT मप्रतिसे पास - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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