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जैनहितैषी
[ भाग १३
दुहाई देते हुए, उसे बुरा भला कहने में भी किसी प्रदान की उन्होंने स्त्रियोंको ही उन्नत प्रकारका संकोच नहीं करते।
नहीं किया है, सारे यूरोपकी उन्नतिका भी यही इस प्रकार पराधीनताकी बेड़ी पहनकर कारण हुआ । शिक्षाकी स्वतंत्रता पाकर स्त्रियोंस्त्रियाँ पुरुषोंकी आज्ञानुसार अपना जीवन ने पुरुषोंको संसारोपयोगी शिक्षासम्बन्धी कामों व्यतीत करने लगीं। परन्तु जब यूरोपमें स्वाधी- में सहायता दी । धार्मिक स्वतंत्रता पाकर उन्होंने नताकी लहरें हिलोरें मारने लगी तब वहाँ पुरुषोंके धर्मविश्वासको दृढ़ किया, विचारपुरुषोंने अपने राजनैतिक अधिकार प्राप्त करनेके स्वातंत्र्यसे उच्च विचारोंके कर्मों में उन्हें सहायता लिए आन्दोलन आरम्भ किया । यूरोपके मध्यम पहुँचाई । इस प्रकार जितना पुरुषोंने उन्हें दिया कालका इतिहास बिना पढ़े न तो इंग्लैंड निवा- उससे कई गुणा अधिक उन्होंने वापस भी कर सियोंकी राजनैतिक अधिकारप्राप्ति की कथा दिया । परन्तु यह सब कुछ होने पर भी जो जानी जा सकती है और न झांसकी राज्य- आनुवंशिक विचारक्रमका अंग-मैल जमा हुआ क्रान्तिका पता चल सकता है और न जर्मन- था वह दूर न हुआ और स्त्रियोंको पुरुषोंके साम्राज्यके संगठनसे ही परिचय कराया जा समान अधिकार दिलाने चाहिए, यह कहते हुए सकता है। यह बात केवल एक बात कहनेसे भी बराबरीका वर्ताव करनेमें लोग हिचकिचाते समझाई जा सकती है कि यूरोपनिवासियोंने ही रहे ।और यह बात मान ली गई कि ईश्वरीय जहाँ अपने राजनैतिक अधिकार प्राप्त करके नियमके अनुसार उनमें भिन्नता है और प्राकृअपनी भौतिक उन्नति के साधनोंको इकट्रा करना तिक भिन्नता हमारे बराबरीके अधिकार दे देने आरम्भ किया वहाँ उन्हें यह भी मालूम हुआ पर भी बनी ही रहेगी। अर्थात् स्त्रियाँ पराधीन हैं कि यह उन्नति तबतक अधूरी रहेगी जबतक और सदा पराधीन बनी रहेंगी । यह विचार अब स्त्रियोंका भी समाजमें कोई स्थान न होगा। जिन भी सदयसे हटाये नहीं जासके । स्त्रियाँ पुरुषोंके महात्माओंने यह सोचा उन्होंने अनेक प्रकारकी समान युद्ध कर सकती हैं, परन्तु उन्हें सेनापति उन्नतियों के साथ साथ अपनेसे निकट सहयोगी, बनानेका किसीको साहस नहीं होता । स्त्रियाँ स्त्रीजातिकी उन्नतिका भी प्रयत्न आरम्भ उच्च राजनैतिक विचार प्रगट कर सकती हैं, किया। परन्तु उन्होंने भी स्त्रियोंकी सहयोगिता परन्तु वे प्रधान सचिव नहीं बनाई जा सकती।
और अपनेसे बराबरीका विचार तो किया, परन्तु स्त्रियाँ घरमें अच्छी सलाह देकर अच्छी शिक्षा पराधीनताकी जंजीरसे छुड़ानेके लिए वे प्रयत्न- देकर पुरुषोंको प्रधान सचिव बना देनेकी एक वान् न हुए । स्त्रियोंकी मानसिक और नैतिक योग्य मशीन समझी जाती हैं, परन्तु वे स्वयं उस उन्नतिके लिए उन्होंने जो प्रयत्न किये वे बहुत पद पानके योग्य नहीं । इतना ही नहीं, वे कुछ फलीभूत हुए । वहाँ स्त्रियोंने अच्छी उन्नति राजकार्यमें राय देनेका भी अधिकार नहीं पा की । शिक्षा, विचार, विज्ञान, धर्म आदि कर्मोंमें सकतीं । यह अन्याय, यह विचारस्वातंत्र्यकी उन्होंने जो उन्नति की उससे यूरोपको एक नया भिन्नता अब भी यूरोपमें बनी हुई है और स्वरूप प्राप्त होगया । यदि स्त्रियोंकी सहयोगिता स्त्रियोंकी पराधीनता कम हो जाने पर भी नष्ट न होती तो आज यूरोपका जो उत्कर्ष हो रहा नहीं की जा सकी। है शायद वह दिखाई न पड़ता। जिन महा- यूरोपमें स्त्रियोंको बहुत कुछ स्वतंत्रता प्रदान माओंने यूरोपकी स्त्रियोंको कुछ स्वतंत्रता की गई है, पुरुष उनका बहुत कुछ आदर गान
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