Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 92
________________ २८४ जैनहितैषी [भाग १३ आधिक मनुष्य थे। गोखलेके शोककी तरह वहाँकी स्त्रियोंकी यदि हम अपनी स्त्रियोंसे उनकी शवक्रिया भी भारतमें अनुपम हुई। तुलना करें और यह विचारें कि उनकी योग्यता गोखलेके उद्गारोंके साथ ही अब इस अल्प लेखको तक पहुँचनेके लिए कितना समय लगेगा तो यहीं समाप्त किया जाता है, यह प्रश्न हमारे समाजमें उपहासके योग्य समझा जायगा । इसी लिए यह प्रश्न न ___Mr. Naoroji has attained in the hearts उठाकर यूरोपकी दशापरसे हम विचार करेंगे कि of millions of his countrymen, without वहाँ स्त्रियोंके सम्बन्धमें पहले क्या विचार थे distinction of race or creed, a place which rulers of men might enyy, and which in और अब उनके परिवर्तन होकर क्या दशा हई its character is more like the influence है और अब भी उनकी पराधीनता यदि बनी है which great teachers of humanity have तो कितनी और किन कारणोंसे ? exercised on those whose thoughts and hopes and lives they have litted to a hig. यूरोपनिवासी भी स्त्रियोंको हमारे देशी her plane. The life of such a man, is one तरह अपने भोग विलासकी एक सामग्री समझते of the most perfect examples of the highest type of patriotism that any country थे। अतएव बाल्यावस्थासे ही कन्याओंकी शिक्षा has ever produced. और रहन सहनका प्रबंध बालकोंकी अपेक्षा भिन्न प्रकारका हुआ करता था। स्त्रियोंकी रहनसहन स्त्रियोंकी पराधीनता। अथवा चालचलन या कार्यप्रणाली परुषोंसे भिन्न रहे, ऐसा प्रबंध आरम्भसे ही वहाँ किया स . जाना था। इसका परिणाम यह होता था कि ( लेखक-श्रीयुत ठाकुर सूर्यकुमार वर्मा ) बाल्यावस्थासे ही स्त्रियोंके मत और विचार ऐसे आजसे नहीं, अनेक वर्षों से, इस प्रश्न पर संकुचित हो जाते थे कि उनको यह सोचनेका संसारके सभी देशोंमें वादविवाद चल अवसर ही नहीं मिलता था कि ईश्वरीय नियमा. रहा है कि स्त्रियाँका स्थान मानव समाजमें ठीक नुसार प्राकृतिक रूपसे पुरुष और स्त्रियोंमें क्या तौर पर स्थिर कर दिया जावे । परन्तु यह प्रश्न अन्तर है । स्त्रियोंकी यह मानसिक पराधीनता इतना कठिन है कि इसे सलझाने के लिए जितना आजकी नहीं है। पुरुषोंने यह पराधीनताकी बेड़ी अधिक प्रयत्न किया जाता है उतना ही अधिक आज हजारों वर्षोसे उनके पैरोंमें डाल रक्खी है। उलझता जाता है । आज हम यहाँ भारतीय स्वेच्छापूर्वक कार्य, आत्मसंयम और स्वावलम्बन स्त्रियोंकी बात न कहकर उस सभ्य देशकी चर्चा इन गुणोंका विकाश होना तो दूर रहा, ये हैं करना चाहते हैं, जहाँपर स्त्रियोंको पुरुषोंने अपने क्या और इन गुणविशेषोंसे स्त्रियोंको भी कुछ समान अनेक अधिकार दे दिये हैं। आज यरो- प्रयोजन है या नहीं, यह बात भी वंशपरम्पराकी रोपमें करीब तीन चारसौ वर्षसे, या यों कहिए प्रवृत्ति के कारण उनमें इतनी मन्द हो गई कि वहाँजबसे यूरोपमें आधुनिक उन्नतिने लहरें मारनी तक उनके विचार ही नहीं उठने पाते थे। आरम्भ की हैं तब से, स्त्री-पुरुषोंके सम्बन्धमें, जिस मनुष्यको अपने स्वतः उठनका कोई बराबर वादविवाद होता आ रहा है; और बहुत मार्ग सूझ ही नहीं पड़ता वह जानता ही नहीं कि से उदारहृदय महात्माओंके प्रयत्नसे स्त्रियोंकी हमें किस मार्गसे कहाँ जाना चाहिए अब वह पराधीनताकी बेड़ी कुछ हलकी हुई है। उस प्रयत्नकी ओर ही नहीं झुकता । पुरुषोंकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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