Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 86
________________ २७८ जैनहितैषी - कुछ पण्डित महाशयोंने यह चर्चा उपस्थित की थी कि - हरी काटने, छेदने, उबालने, पीसने आदि अचित्त हो जाती है । अतएव भुने या उबले हुए आलू, सूखी सोंठ और हल्दी आदिके खाने में कोई दोष नहीं है । यद्यपि यह चर्चा शास्त्रानुसार की गई थी, बड़े बड़े ग्रन्थोंके प्रमाण दिये गये थे और कोई इस बातका खण्डन भी नहीं कर सका था; फिर भी लोगोंने हुल्लड़ मचाया था । यह हुल्लड़ बहुत बड़ा । एक सुप्रसिद्ध पण्डितजी - जो इस चर्चा के अगुओंमें थे- कुछ सोच समझकर और अपनेको मुकाबलेके योग्य न पाकर स्वयं ही इस हुल्लड़ में शामिल हो गये । उन्होंने अपनी सरंक्षकतामें चलनेवाली संस्थामें तुरन्त ही एक नियम बना दिया कि उसके रसोईघरमें ( बाहर कोई हर्ज नहीं और नदी के किनारे तो बिलकुल हर्ज नहीं ) आलू न बनने पावें । विषस्य विषमौषधम् । शोरकी दवा शोर । यह शोर शान्त हो गया और इस तरह एक संस्था से श्रद्धा उठती उठती रह गई । इस तरह बीसों उदाहरण दिये जा सकते हैं; परन्तु उनके लिए इस लेखमें स्थान नहीं । 1 यह ८ आओ, अब खोज करें कि वास्तवमें श्रद्धा उठ गई' का लड़ उठता कहाँसे है । भोले भाले अपढ़ लोग तो केवल अनुकरण करना जानते हैं । वे बुरी से बुरी बात को भी धर्म समझ बैठते हैं । आप शास्त्रकी गद्दी पर बैठकर उन्हें चाहे जो समझा दीजिए । हाँ, रूढियों के विरुद्ध कहनेके लिए सर्वज्ञ भगवान् भी आ जावें, तो भी वे उनकी बात न मानेंगे। साथ ही जिन पर उनकी श्रद्धा है और जो समाजमें बड़े आदमी समझे जाते हैं, यदि वे किसी रूढीको तोड़ डालें तो फिर उन्हें रोक भी नहीं सकते । अर्थात् वे तो केवल मेशीन हैं नकी कल साधारणतः उनके तंग करनेवालों । Jain Education International [ भाग १३ के ही हाथमें है । अतः सोतेका स्थान यहाँ नहीं, उसकी खोज किसी दूसरी ओर ही करनी होगी। नदी, तालाब, कुएँ आदिमें इसका पता नहीं चलेगा । इन पहाड़ों को देखिए । इन्होंने कितने बड़े बड़े पत्थर अपने चारों ओर इकट्ठे कर रक्खें हैं जिनके बीचमें इतना अन्तर है कि पानीक तो बात ही क्या हम लोग भी घुस सकते हैं। वर्षाका पानी भी ये हजम कर जाते हैं । बस, हुलड़का सोता आपको यहीं मिलेगा। अच्छा तो अब पता लगाओ कि बड़े बड़े ग्रन्थोंको उनका भाव समझे विना रट जानेवाले और समाजकी शिक्षाका कार्य अपने हाथ में ले रखनेवाले कौन कौन हैं। उनकी भी खोज करो जो अयोग्य होते हुए भी बड़े बड़े पद पा चुके हैं और शायद इसी लिए समाजकी बागडोर उनको पकड़ा दी गई है। बस, वहीं हुल्लड़का सोता मिलेगा। यह देखो, वहींस पानीका प्रवाह वह रहा है। लो सुनो, उस आवाजको '१४ वर्षकी और कुमारी ! ' एक और लो-' जैन जातियों में परस्पर रोटी-बेटी व्यवहार ! सब एकाकार ! ' इधर की भी सुनिए - ' पूजामें सचित्त फल फूल !" अररर ' श्रुतकेवलियोंके ग्रन्थोंकी समालोचन! !' हाय हाय ! ' म्लेच्छ भाषामें जैन ग्रन्थ ! कान फूटे, भागो ! ऐसा ही समुदाय समाजसुधारक के पीछे खुफिया पुलिसकी तरह लगा रहता है । धर्मवृद्धि और प्रभावना समाजसुधार पर ही निर्भर है । एक दुखियाको क्या, यदि तुमने मन्दिर में भगवानकी मूर्तिके आगे एक गिन्नी चढ़ा दी ? उसको तो तुम दुःखमें तड़फता ही छोड़ गये । और इससे भी तुमको क्या सरोकार कि वह गिनी कितने गरीबोंका पेट काटकर लाई गई है ! तुम्हारी असूर्यम्पश्या कुलीन महिलायें भ्रूणहत्यायें करें और इससे दूसरे लोग तुम्हारे ब्रह्मचारि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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