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अङ्क५-६]
दर्शनसार-विवेचना। इपि पडिसहस्सवस्सं वीसे कक्कीण दिक्कमे चरिमो। जलमंथणो भविस्सदि कक्की सम्मगमंथणओ ॥ ८४७॥ इह इंदरायसिस्सो वीरंगदसाहु चरिम सम्वसिरी । अज्जा अग्गिल सावय वर साविय पंगुसेणावि ॥ ८४८॥ पंचमचरिमे पक्खउ मास तिवासावसेसए तेण । मुणि पढमपिंडगहणे संणसणं करिय दिवस तियं ॥ ८४९॥ सोहंम्मे जायंते कतिय अमावासि सादि पुव्वण्हे । इगि जलहि ठिदी मुणिणो सेसतिये साहियं पल्लं ॥ ८५० ॥ तव्वासरस्स आदी मझते धम्म-राय-अग्गीणं ।
णासो तत्तो मणुसा णग्गा मच्छादिआहारा ॥ ८५१ ॥ अर्थ-" इस तरह प्रत्येक सहस्र वर्षमें एक एकके हिसाबसे बीस कल्कि होंगे। १९ कल्कि हो चुकने पर (पंचमकालके अन्तमें ) 'जलमंथन' नामका अन्तिम कल्कि सन्मार्गको मंथन करनेबाला होगा । उस समय इन्द्रराजके शिष्य वीरांगज नामके मुनि, सर्वश्री नामकी अर्जिका, अर्गल नामका श्रावक और पंगुसेना नामकी श्राविका ये चार जीव जैनधर्मके धारण करनेवाले बचेंगे । पंचमकालके अन्तिम महीनेके अन्तिम पक्षमें जब तीन दिन बाकी रह जायेंगे, तब मुनि श्रावकके यहाँ भोजन करने जायेंगे और ज्यों ही पहला कौर लेंगे, त्योंही कल्कि उसको छीन लेगा। इससे वे तीन दिनका संन्यास धारण करके कार्तिककी अमावास्याके पहले प्रहरके प्रारंभमें मृत्युको प्राप्त होकर सौधर्म स्वर्गमें एक सागर आयुवाले देव होंगे। आर्यिका, श्राविका और श्रावक भी सौधर्म स्वर्गमें कुछ अधिक एक पल्यकी आयु पावेंगे। इसके बाद उसी दिनके आदिमें, मध्यमें और अन्तमें क्रमसे धर्मका, राजाका और अग्निका नाश हो जायगा और लोग नंगे तथा कच्ची मछली आदिके खानेवाले हो जायँगे।" मालूम नहीं, इस भविष्यवाणीमें सत्यका अंश कितना है। आजकलकी श्रद्धाहीन बुद्धिमें ऐसी बातें नहीं आ सकतीं कि अग्नि जैसे पदार्थका भी संसारमेंसे या किसी क्षेत्रमेंसे अभाव हो सकता है। पर इन बातों पर विचार करनेका यह स्थल नहीं है।
इस ग्रन्थके सम्पादनमें और विवेचन लिखनेमें शक्तिभर परिश्रम किया गया है; फिर मी साधनोंके अमावसे इसमें अनेक त्रुटियाँ रह गई हैं। प्रमादवश भी इसमें अनेक दोष रह गये होंगे । उन सबके लिए मैं पाठकोंसे क्षमा चाहता हुआ इस विवेचनाको समाप्त करता हूँ। यदि कोई सज्जन इसकी त्रुटियोंके सम्बन्धमें सूचनायें भेजेंगे, तो मैं उनका बहुत ही कृतज्ञ होऊँगा।
चन्दाबाडी, बम्बई. श्रावण शुक्ल ४ सं० १९७४ बि.
नाथूराम प्रेमी।
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