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जैनहितैषी
[ भाग १३
हुआ सुंदर स्वर्गीय विमान; ६ कूड़े कर्कटमें समुद्रको उल्लंघन करना; ६ लोमड़ियोंद्वारा वृद्ध उत्पन्न हुआ कमल; ७ नृत्य करता हुआ भूतोंका बैलोंका पीछा किया जाना ।' समूह; ८ खद्योतका (जुगनूका) प्रकाश; ९ मध्यमें इन छहों स्वप्नोंका फल क्रमशः इस प्रकार सूखा और प्रान्तमें थोड़े जलको लिये हुए सरोवर; दिया है:१०सुवर्णके पात्रमें कुत्तेकाखीर खाना;११ हाथी पर १ पापका प्रचार और पुण्यका लोप होगा; चढ़ा हुआ बन्दर; १२ समुद्रका मर्यादा छोड़ना; २ नीच, दुष्कुलीन और दुराचारी मनुष्य अधि-- १३ बहुभारयुक्त रथका बछड़ों द्वारा चलाया कार प्राप्त करेंगे; ३ उच्चकुलीन राजा लोग जाना; १४ ऊँट पर चढ़ा हुआ राजपुत्र; नीचोंके साथ संसर्ग करेंगे; ४ नीच जातिके ५१ देदीप्यमान रत्नराशिका धूलिसे आच्छादित मनुष्य सत्कुलीनोंको कष्ट देंगे और उन्हें उसी होना; १६ काले हाथियोंका युद्ध । *
समस्थलीकी ओर नीचा ( अर्थात् अपने जैसा) __ कर्नाटकी विद्वान देवचन्द्रने भी अपने 'राजाव- करनेका प्रयत्न करेंगे; ५ राजालोग व्यवहार कर लीकथे।'x नामक कन्नड ग्रंथमें सम्राट चंद्रगुप्तके ।
(चुंगी ) और अन्य अनुचित टैक्स लगाकर १६ स्वप्नोंका उल्लेख किया है। परन्तु इस उल्लेखमें
प्रजापीडनमें सहायक बनेंगे; ६ नचि पुरुष झूठी स्वप्नोंके जो नाम दिये हैं उनसे मालूम होता है
प्रशंसाओं तथा नम्रताओंसे उच्चकुलीन, सत्पुरुष कि राजावली कथेमें भद्रबाहुचरित्रके स्वमों से
और बुद्धिमानोंको ठगेंगे।' ६, ७, ११, १२, १४, और १५ नम्बरके छह स्वप्न नहीं हैं। इनके स्थानमें वहाँ दूसरे ही प्रकारके
यह फल भद्रबाहचरित्रके उन उहाँ स्वमोंके स्वम दिये हैं, जिनके नाम ये हैं:--
फलसे प्राय: एकदम विलक्षण है। जैसा कि उक्त १ समस्त वायुमंडलमें व्याप्त होता हुआ
चरित्रमें दिये हुए उनके निम्नफलोंसे प्रगट है:---- धुआँ; २ सिंहासन पर बैठा हुआ एक बन्दर; .
६ प्रायः हीन जाति के लोग जैनधर्मको धारण ३ गर्दभों पर चढ़े हुए क्षत्रियपुत्रः ४ बन्दरोंका करेंगे, क्षत्रियादिक उसे धारण नहीं करेंगे: राजहंसाको भय दिखाकर भगानाः ५ गोवत्सोंका ७ मनुष्य नीच देवताओंमें अधिक श्रद्धा और
। भक्तिके रखनेवाले होंगे; ११ दुष्कुलमें उत्पन्न यथा:-"इमान् षोडशदुःस्वप्नान् ददशाश्चर्यकारकान् । कल्पपादपशाखाया भंगोऽस्तमनं रखे हुए नांच जातिके मनुष्य राज्य करेंगे, क्षत्रियलोग तृतीयं तितउप्रक्षमुद्यन्तं विधुमंडलम् । तुरीयं फणिनं राजा नहीं होंगे; १२ राजालोग प्रजाकी संपर्ण स्वप्ने फणद्वादशमांडतम् ॥ १२॥ विमानं नाकिनां कनं लक्ष्मी ग्रहण करेंगे और न्यायमार्गक! संघन ध्याघुटन्तं विभासरं । कमलं तु कचारस्थं नत्यन्तं भत- करनेवाले होंगे: १४ राजालोग निमल धर्मको वृन्दकम् ॥ १३ ॥ खद्योतोद्योतमद्राक्षात्प्रान्ते तुच्छ. जलं सरः । मध्ये शुष्कं हेमपात्रे शुनः क्षीरानभक्षणम्
१ कचारम्बजमुत्पन्नं दृष्टं प्रायेण तेन वै। जिनधर्म ॥ शाखामृगं गजारूढमब्धि कूलप्रलोपनम् ।
विधास्यन्ति हीना न क्षत्रियादयः ॥ २ भूतानां नर्तन बाह्यमान तथा वसभूरिभारभृतं रथम् ॥ १५॥ राज.
राजन्नद्राक्षीरद्धतं ततः। नीचदेवरता मुढा भविष्यन्तीद्द पुत्रं मयारूढं रजसा पिहितं पुनः । रत्नराशि कन
मानवाः ॥ ३ तुंगमातंगमासीनशाखामगनिरीक्षणात् । कान्ति युद्धं चासितदन्तिनोः ॥ १६ ॥"
राज्यं हीना विधास्यन्ति कुकुला न च बाहुजाः ।।४ सीमो४ इस लेखमें राजावलीकथेका जो कुछ उल्लेख किया
लंघनतः सिन्धोास्यन्ति सकलां श्रियम् । जनाना च गया है, वह सब मिस्टर बी. लेविस राइस साहबकी भविष्यन्ति भूमिपा न्यायलंधकाः ॥ ५ क्रमेलकसमारू• इनिस्कपशन्स ऐट श्रवणबेलगोल ' नामक अंगरेजी ढराजपुत्रस्य वीक्षणात् । हिंसाविधि विधास्यन्ति धर्म पुस्तकके आधार पर किया गया है।
हित्वामलं नपाः ।।
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